Saturday, June 20, 2020

galwan valley conflict गलवान घाटी : सीमाओं पर योद्धा डटे हुये हैं!

galwan valley conflict
सर्वदलीय बैठक हो गई किंतु चीनी आक्रमण पर अभी भी भिन्न भिन्न बातें चल रही हैं। जैसा कि होता ही है, धैर्य व बुद्धिमत्ता तज उत्तर के हीनुओं से ले कर दक्षिण के प्रज्ञाशत्रु तमिळ तक समस्त टिकटाकिये चिम्पिये लगे हुये हैं। सरल शब्दों में समझते हैं: (1) जम्मू व काश्मीर को आधिकारिक रूप से दो भागों में बाँट कर गिलगित, बाल्टिस्तान व अक्षय चिन को नवनिर्मित लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश में सम्मिलित किया गया। इसके साथ ही चीन व पाकिस्तान से सम्बंधित विवादित क्षेत्रों का बहुत बड़ा भाग सीधे केंद्रीय शासन में आ गया। कथित कश्मीरियत का जो परोक्ष इस्लामी प्रभाव कूटनीतिक रूप से इस क्षेत्र पर था, वह एक झटके में 'बौद्ध' हो गया। इसे चीन व पाकिस्तान ने बहुत अच्छे से समझा। कश्मीर की विशेष स्थिति बनाये रखने के नेपथ्य में ऐसे जुड़े पक्ष भी थे जो एक झटके में स्वाहा हो गये। (2) इस लद्दाख के पश्चिमी क्षेत्र अक्षय चिन Aksai Chin को भारत आधिकारिक रूप से अपनी भूमि मानता है जो चीन के अवैध अधिकार में है। इसी प्रकार पूर्वी गिलगित व बाल्टिस्तान आदि को भारत आधिकारिक रूप से अपनी भूमि मानता है जो पाकिस्तान के अवैध अधिकार में हैं। (3) जो भूमि जिसके अधिकार में है, उस पर वह जो करना चाहे, करेगा। आप रोक नहीं सकते क्योंकि आप का अधिकार है ही नहीं! जिस प्रकार गिलगित व बाल्टिस्तान में चल रही परियोजनाओं को, चाहे सैन्य हों या असैन्य, आप नहीं रोक सकते, उसी प्रकार अक्षय चिन में भी नहीं रोक सकते। (4) चीन जो कुछ भी कर रहा है, अपने अधिकार क्षेत्र में कर रहा है, वास्तविक नियंत्रण रेखा LAC से लगे अपने भाग में कर रहा है जो कि आधिकारिक रूप से आप का है किंतु वास्तव में नहीं है। आप के घर पर कोई बलात स्थापित हो जाये तो कील ठोंके या बोरवेल बनवाये, आप कुछ नहीं कर सकते। वैसी ही स्थिति है। (5) जब प्रधानमंत्री ने कहा कि चीन हमारी भूमि पर नहीं प्रविष्ट हुआ है व हमारा कोई धाक उसके नियंत्रण में नहीं है तो इसका अर्थ है कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा से इधर नहीं आया है, अक्षय चिन में तो वह पहले से ही है। (6) अक्षय चिन हो या गिलगित बाल्टिस्तान, उनके निर्माण कार्य रोकने का एक ही मार्ग है - संधि द्वारा या आक्रमण कर भूमि पुन: ले ली जाय। उस स्थिति में वहाँ जो भी निर्माण कार्य हुये होंगे, हमारे होंगे। संधि से तो मिलने से रहे, युद्ध ही एकमात्र उपाय है। समझ गये? (7) हम क्या कर सकते हैं? हम अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में द्रुत गति से सामरिक व नागरिक निर्माण कार्य कर सकते हैं जोकि विगत छ: वर्षों से युद्ध स्तर पर चल रहे हैं, जिन पर विदूषकों के शासन काल में या तो नगण्य प्रगति हुई या सोचा तक नहीं गया! हम अपनी सैन्य मारक क्षमता बढ़ा सकते हैं। उस पर भी काम चल रहा है। हम LAC से आगे बढ़ने के उनके प्रत्येक प्रयास का मुँहतोड़ उत्तर दे सकते हैं जोकि किया जा रहा है। हम कूटनीतिक स्तर पर चीन व पाकिस्तान को घेरने के प्रयास कर सकते हैं। वह भी किया जा रहा है। यह बात और है कि यह बहुत ही मंद गति से बढ़ने वाला काम है जिसकी अनिश्चितता बहुत अधिक है। तिब्बत, हांगकांग जैसे उदाहरण आप के समक्ष हैं। कोई भी देश आपके लिये टैंक व शस्त्रास्त्र ले कर चीन या पाकिस्तान से नहीं भिंड़ेगा, इतना तो आप समझते ही होंगे। (8) राष्ट्रीय स्तर पर आधिकारिक स्पष्टीकरण के पश्चात भी यदि आप उन क्षेत्रों में निर्माण कार्य रुकवाना चाहते हैं जो चीन या पाकिस्तान के अधिकार में हैं तो इसका सीधा अर्थ है कि आप चाहते हैं कि भारत चीन या पाकिस्तान पर आक्रमण करे। और कोई उपाय तो है नहीं। समस्या यह है कि आप स्पष्ट हैं ही नहीं या आप को मनोरञ्जन व रोमाञ्च का एक और अवसर मिल गया है या आप जानते ही नहीं कि आप चाहते क्या हैं? या जानते भी हैं तो यह नहीं जानते कि उसकी लब्धि कैसे होगी? उसके लिये निर्वाचित सरकार है, सेनायें हैं, विशेषज्ञ हैं; उन पर विश्वास कीजिये। विश्लेषण चलता रहे, टोका टोकी होती रहे, लोकतंत्र में आवश्यक हैं किंतु अपनी सीमाओं का ज्ञान होना भी आवश्यक है। यह बात और है कि चीन में लोकतंत्र है ही नहीं। वहाँ हान जाति का अधिनायकवाद है और आप के यहाँ 2700 से अधिक जातियाँ हैं, सबके अपने अपने परशु हैं, कोई किसी से उन्नीस नहीं और राम की किसी को पड़ी नहीं! इन बड़े ही मूलभूत अंतरों के मर्म आपकी बौद्धिक सीमा के बाहर हैंउसी काम तक सीमित रहें जो आप कर सकते हैं, बाइक उठाइये और वहाँ पहुँचिये जहाँ कोरोना काल से लड़ने हेतु मनरेगा में अतिरिक्त फण्ड आया है, पचास प्रतिशत तो आप का बनता ही है न! उसका त्याग न करें, सीमाओं पर योद्धा डटे हुये हैं!

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