नास्त्यनन्तराय: कालविक्षेपे। असंशयविनाशात्संशयविनाश: श्रेयान् ।
⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂⁂(1) मतांतरण conversion राष्ट्रीय स्तर पर अवैध घोषित हो।
(2) साम्प्रदायिक अल्पसंख्यक होने के लिये जनसंख्या प्रतिशत अधिकतम 5% तक निश्चित किया जाय। अल्पसंख्यक राज्य स्तर पर पारिभाषित हों।
(3) नये धर्मस्थलों, कब्रस्थलों, मदरसों एवं पंथीय विद्यालयों के निर्माण नियमन हेतु एक राष्ट्रीय संस्था हो।
(4) मंदिरों के प्रबंधन से सरकार हटे तथा सम्बंधित पुजारी एवं संरक्षकों के न्यास उनका प्रबंधन करें।
(5) शिक्षा में बारहवीं तक केवल केंद्रीय पाठ्य पुस्तकें मान्य हों। मानविकी की एन सी आर टी की समस्त पुस्तकों को कूड़े में फेंक नया अ-वामकृत पाठ्यक्रम लागू हो।
(6) पाठ्यक्रम परिवर्तन कर शिक्षा को अर्थकरी बनाया जाय। विद्यार्थियों का एक राष्ट्रीय डाटा बेस हो।
(7) बी ए से ले कर एम बी ए तक, डिप्लोमा से ले कर इंजीनियरिंग तक पढ़े लिखों व्यर्थ के युवाओं की भीड़ न हो इस हेतु उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु चयन की एक कठिन मानक प्रक्रिया हो। जाने कितने करोड़ युवा मानव वर्ष भटकते युवाओं द्वारा रोटी के स्रोत के संधान में व्यर्थ हो जाते हैं।
(8) छात्रसंघ चुनावों पर स्थायी प्रतिबंध हो।
(9) विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के आचार्यों का नियोजन स्थायी न हो कर समीक्षणीय हो - कितने अकादमिक पत्र छपे? अन्य क्या योगदान किये? विद्यार्थियों की गुणवत्ता में कितना सुधार हुआ आदि के निर्धारण हेतु तन्त्र हो।
(10) उच्च शिक्षा पर छूट समाप्त हो। उद्योग एवं अन्य समृद्ध संस्थानों द्वारा केवल प्रतिभाशाली एवं योग्य छात्रों हेतु वृत्ति की व्यवस्था अनिवार्य की जाय।
(11) अभियांत्रिकी शिक्षा में पाणिनीय व्याकरण अनिवार्य किया जाय। आरम्भ हाई स्कूल से ही हो जाय।
(12) संविधान की भूमिका से पन्थनिरपेक्ष एवं समाजवाद शब्द हटा दिये जाँय।
(13) न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु संविधान संशोधन कर नवीं अनुसूची में प्रक्रिया को सम्मिलित किया जाय। सभी रिक्त स्थान भरे जायँ तथा निर्णयों की समयसीमा निश्चित की जाय। वर्तमान का चाचा-भतीजा-यौनतुष्टि तंत्र समाप्त किया जाय।
(14) समान नागरिक संहिता लागू हो।
(15) अयोध्या में श्रीराम का भव्य मंदिर उनके जन्मस्थान पर बिना किसी क्रूरान या अजान के अस्तित्व के बने।
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मैं लिखता चला जा सकता हूँ। प्रथमदृष्टया असम्भव प्रतीत होती इन बातों के बिना भारत का कल्याण नहीं होना। आने वाली सरकार किसी की भी हो, मेरी अपेक्षायें यही रहेंगी तथा इन्हें निकट भविष्य में कोई सरकार पूरा नहीं करेगी, मोदी सरकार भी नहीं। जो होना चाहिये, उसे बिना लाग लपेट के रखते रहना चाहिये, दृष्टि स्वच्छ बनी रहती है तथा जनचेतना भी ।
यदि मोदी भी नहीं करेंगे तो उनके समर्थन में इतना लगे क्यों?
पहले की एक घटना सम्भवत: यहाँ बता चुका हूँ। पुराने समय में एक निर्धन सवा रुपया लेकर आपण गया। पंसारी के यहाँ जब भुगतान करने हेतु मोर्ही में हाथ लगाया तो पाया कि रुपया कहीं गिर गया था। उसने बची चवन्नी भी फेंक दी तथा बिना अन्न के ही घर लौट आया। पत्नी ने पूछा तो सच बताते हुये बोला कि रुपया गिर गया तो चवन्नी का क्या? उसे भी फेंक दिया ! उसकी पत्नी ने सिर पीट लिया कि कैसे करमजले से मेरा लगन हो गया!
... मोदी को समर्थन उस चवन्नी को बचा लेने का उपक्रम है जिसमें आगे सवा के सवा क्या, सैकड़ा भी करने की आशा है, उत्साह है, कर्म है तथा सामर्थ्य भी।
उनके कार्यकाल के बीच के तीन वर्षों में आप मेरी अनेक कटु उक्तियाँ पायेंगे क्योंकि परिणाम की बात नहीं, ऊपर जो लिखा है, उन पर कोई दिशा ही नहीं दिख रही थी। चौथे वर्ष तक विकल्पों की दरिद्रता स्पष्ट हो गयी, इस देश का दुर्भाग्य भी कि सवा अरब से भी अधिक जनसंख्या उनसे अच्छा कोई विकल्प नहीं ला पाई जब कि मोदी निश्चित गति से निश्चिंत बढ़ते गये। जो दिशा ली उसे शक्ति एवं सौंदर्य से भर दिया।
लगता गया कि विपक्ष की आँख केवल एवं केवल सत्ता प्राप्ति द्वारा मोदी के प्रयासों से जुटी समृद्धि की लूट में है। लगता गया कि मोदी का रहना इस कारण आवश्यक है कि जो संवेग momentum बना है, वह न टूटे, जो समृद्धि आई है, जो कार्य चल रहे हैं, वे नष्ट न हों। देश एक दिन में नहीं बनते बिगड़ते, बिगड़े को बनाने में दशकों का तप लगता है तथा मोदी जैसा राजनीति में आज तपस्वी कौन है?
मैंने निर्णय किया कि अपने निर्णय को टालते हुये चुनावों तक मोदी के पक्ष में ही लिखना है। जब युद्ध का निर्णायक क्षण आये तो उपस्थित रहना है तथा सम्पूर्ण समर्पण से पक्ष लेते हुये रहना है। आज जब कि अंतिम चरण के चुनाव समाप्त हो गये, मैं अपने स्थगित निर्णय को लागू करने जा रहा हूँ। इस मञ्च पर इस प्रारूप में मेरा यह अंतिम लेख है। जो मुझे पढ़ते हैं, वे एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक की अवधि में अवश्य ही एक बार देखते होंगे, उन्हें सूचना मिल जाये, इस कारण यह लेख तब तक रहेगा। तृतीया को जब कि चंद्र मूल नक्षत्र में होंगे, यह खाता अनुपलब्ध हो जायेगा। पूर्वाषाढ़ नक्षत्र मेरे लिये नये आरम्भ का समय होगा।
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चुनाव परिणामों तक रुकने का कोई अर्थ नहीं है। रुका तो इस निर्णय को अनिवार्यत: परिणामों से जोड़ कर देखा जायेगा। लोकतंत्र में सरकार जनता चुनती है, एक बने बनाये पञ्जर की सीमाओं में रह कर चुनती है। जैसी जनता, वैसी सरकार। मोदी जी दुबारा आये तो सकारात्मक परिवर्तन संवेगी रहेंगे, नहीं आये तो भिन्न प्रकार के संघर्ष पुन: करने होंगे, उस स्थिति में लगा कि मैं एक गिलहरी की भाँति तुच्छ योगदान कर सकता हूँ तो अवश्य आऊँगा। अभी तो अपनी सीमाओं का पूरा ज्ञान हो चुका है तथा जब सीमायें ज्ञात हो जायें तो नये क्षेत्र का संधान ही कर्तव्य होना चाहिये - चरैवेति, चरैवेति। यहाँ मेरा लिखा पानी के बुलबुले की भाँति ही होता है - स्थायी प्रभाव से हीन। मेरी तो है ही, सीमा मञ्च की भी हो सकती है, लोगों की भी या संयुक्त प्रभाव भी, परंतु है तो है।
धन्यवाद फेसबुक प्रबंधन को कि अपनी सेटिंग इतनी तगड़ी रही कि एक दशक लम्बे साथ में कभी न छुट्टी पर भेजा, न ही ब्लॉक किया! अपनी बात रखने हेतु मञ्च प्रदान किया, भले कभी कभी कष्ट भी दिया।
आप सबसे बहुत कुछ सीखा। आप लोगों से बहुत प्रेम एवं सम्मान मिला। जाने कितने अद्भुत मित्र एवं समर्थक मिले, ऐसे कि एक बार मिला तक नहीं, किंतु कहने पर बहुत कुछ कर गये! उन्हें आभार कहने में भी संकोच होता है।
मेरे कहने पर केवल साँस भर लेते सुधर्मा संस्कृत दैनिक पत्र हेतु लोगों ने अंशदान दिये। भले लघु हों, जाने कितने अभियानों में आप लोग पूर्ण समर्पण से लगे।
यहाँ रहते हुये पूर्णत: नि:शुल्क, पूर्णत: प्रचार मुक्त मघा पत्रिका की नींव पड़ी, भले धन एवं समय मेरा लगा, चल निकली तो आप लोगों के कारण, ऐसे मित्रों के कारण जो पीछे से बहुत कुछ सँभालते हैं - समानशीलव्यसनेषुसख्यम् ।
सनातन युवा न्यास स्थापित हुआ तो आप लोगों के कारण। जब भी माँगा, लोगों ने पूर्ण विश्वास के साथ आर्थिक योगदान भी किये। आप सबका आभारी हूँ कि ये दोनों आगे भी अपने लक्ष्य हेतु लगे रहेंगे।
श्रीरस्तीति रोहित शुश्रुम पापो नृषद्वरो जन इन्द्र इच्चरतः सखा चरैवेति चरैवेति ...
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एक अन्तिम बात जिसे आप मेरे कल्पनाशील मन की उपज मान उपेक्षित भी कर सकते हैं। इस बार के चुनाव परिणामों को लेकर जब सामान्य जन को इतनी उत्कण्ठा है कि उसने स्वयं ही आगे बढ़ प्रचार किया है, तो उसे कितनी होगी जिसके सिर इन समस्त अपेक्षाओं एवं उत्कण्ठाओं का भार है? सरकार के पक्ष में मुझे नहीं लगता कि जनता ऐसे कभी मुखर हुई थी। अपने ऊपर जो अपेक्षाओं का गम्भीर भार है, उसे मोदी जानते समझते नहीं होंगे, ऐसा नहीं है। प्रज्ञा प्रकरण में मोदी ने जो कहा, वह सम्भवत: उनके अवचेतन की अभिव्यक्ति भी हो सकती है कि लोगों का आसक्ति भाव किञ्चित घटे जिससे कि सम्भावित वैपरीत्य में व्यक्तियों द्वारा निराश प्रतिक्रियाओं की तीव्रता तनु हो। मोदी को ले कर कुछ लोग चरम भावुकता में हैं। आप के बंधु, बांधव, मित्र, सम्बंधियों में ऐसे हों तो चुनाव परिणाम के दिन उन पर दृष्टि रखें, विपरीत परिणाम आने पर उन्हें सांत्वना दें। इस देश ने बहुत कुछ देखा है, इतना भंगुर भी नहीं कि पाँच वर्षों का आघात न सह सके! लोग अब जाग कर उठ चुके हैं, अवांछित सरकार द्वारा किये गये अवांछित कर्मों पर लगन से लड़ेंगे।
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अग्ने व्रतपते व्रतञ्चरिष्यामि तच्छकेयन्तन्मे राध्यताम् ।
इदमहमनृतात्सत्यनुपैमि ॥
का सोचे थे?
ReplyDeleteहम नहीं आएँगे?
हम मुअला के बादो आईब...पिपरा पर के परेत बनि के!
मन होखे तऽ ईहो लिखि लीं!
पाँव लागतानी। ��