Sunday, May 26, 2019

हिंदुत्व हेतु मोदी से बहुत आशा न रखें


हिंदुत्व हेतु मोदी से बहुत आशा न रखें, हिंदुत्व का हित हिंदुओं से होगा, सरकार से नहीं। मोदी सरकार इतना ही कर सकती है कि उनके उद्योग के आड़े न आये। आप ने उसे चुना जो उपलब्ध विकल्पों में सर्वोत्तम था किंतु वह आप के लिये पूर्णत: मनोनुकूल हो, आवश्यक नहीं।
उपलब्ध विकल्पों में मोदी का ही सर्वोत्तम होना आप की सीमा को दर्शाता है। हिंदुओं में धर्म, देश एवं अपनी नृजाति को ले कर उपेक्षा एवं उदासीनता बहुत है। स्थिति इतनी बुरी है, इतनी कि मोदी में ही आप अपनी समस्त आशाओं को देख पाने को अभिशप्त हैं जबकि मोदी जिस संगठन से आते हैं उसकी स्थापनायें बहुत स्पष्ट हैं तथा वह 'हिंदू' से ऊपर 'राष्ट्र' को रखता है, 'हिंदू' और 'राष्ट्र' में भेद भी। सोच में यह मौलिक अंतर बहुत महत्त्वपूर्ण है।
यह दुर्भाग्य ही है कि संघ के अतिरिक्त देश में हिंदुओं का ऐसा कोई संगठन नहीं है जो समांतर प्राथमिकतायें रखते हुये मोदी वाले 'संक्रमण दशक' से आगे स्पष्ट 'हिंदू राष्ट्र शताब्दी' पर केंद्रित हो।
हाँ, एक बात और, विकास एवं हिंदू राष्ट्र में कोई वैर नहीं। दोंनों परस्पर अपवर्जी एवं समांतर बातें हैं। निराश होने की आवश्यकता नहीं है. अपने स्तर पर हिंदू हित आप से जो भी हो सकता हो, व्यापक परिदृश्य एवं हितों पर केंद्रित रहते हुये करें। जैसे मोदी आये हैं, वैसे ही वह भी आयेगा जो हमें संक्रमण से मुक्त करेगा।

Sunday, May 19, 2019

असंशयविनाशात्‍संशयविनाश: श्रेयान्

नास्त्यनन्‍तराय: कालविक्षेपे। असंशयविनाशात्‍संशयविनाश: श्रेयान् ।
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(1) मतांतरण conversion राष्ट्रीय स्तर पर अवैध घोषित हो। 
(2) साम्प्रदायिक अल्पसंख्यक होने के लिये जनसंख्या प्रतिशत अधिकतम 5% तक निश्चित किया जाय। अल्पसंख्यक राज्य स्तर पर पारिभाषित हों। 
(3) नये धर्मस्थलों, कब्रस्थलों, मदरसों एवं पंथीय विद्यालयों के निर्माण नियमन हेतु एक राष्ट्रीय संस्था हो। 
(4) मंदिरों के प्रबंधन से सरकार हटे तथा सम्बंधित पुजारी एवं संरक्षकों के न्यास उनका प्रबंधन करें। 
(5) शिक्षा में बारहवीं तक केवल केंद्रीय पाठ्य पुस्तकें मान्य हों। मानविकी की एन सी आर टी की समस्त पुस्तकों को कूड़े में फेंक नया अ-वामकृत पाठ्यक्रम लागू हो। 
(6) पाठ्यक्रम परिवर्तन कर शिक्षा को अर्थकरी बनाया जाय। विद्यार्थियों का एक राष्ट्रीय डाटा बेस हो। 
(7) बी ए से ले कर एम बी ए तक, डिप्लोमा से ले कर इंजीनियरिंग तक पढ़े लिखों व्यर्थ के युवाओं की भीड़ न हो इस हेतु उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु चयन की एक कठिन मानक प्रक्रिया हो। जाने कितने करोड़ युवा मानव वर्ष भटकते युवाओं द्वारा रोटी के स्रोत के संधान में व्यर्थ हो जाते हैं। 
(8) छात्रसंघ चुनावों पर स्थायी प्रतिबंध हो।
(9) विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के आचार्यों का नियोजन स्थायी न हो कर समीक्षणीय हो - कितने अकादमिक पत्र छपे? अन्य क्या योगदान किये? विद्यार्थियों की गुणवत्ता में कितना सुधार हुआ आदि के निर्धारण हेतु तन्त्र हो। 
(10) उच्च शिक्षा पर छूट समाप्त हो। उद्योग एवं अन्य समृद्ध संस्थानों द्वारा केवल प्रतिभाशाली एवं योग्य छात्रों हेतु वृत्ति की व्यवस्था अनिवार्य की जाय। 
(11) अभियांत्रिकी शिक्षा में पाणिनीय व्याकरण अनिवार्य किया जाय। आरम्भ हाई स्कूल से ही हो जाय। 
(12) संविधान की भूमिका से पन्थनिरपेक्ष एवं समाजवाद शब्द हटा दिये जाँय। 
(13) न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु संविधान संशोधन कर नवीं अनुसूची में प्रक्रिया को सम्मिलित किया जाय। सभी रिक्त स्थान भरे जायँ तथा निर्णयों की समयसीमा निश्चित की जाय। वर्तमान का चाचा-भतीजा-यौनतुष्टि तंत्र समाप्त किया जाय।
(14) समान नागरिक संहिता लागू हो। 
(15) अयोध्या में श्रीराम का भव्य  मंदिर उनके जन्मस्‍थान पर बिना किसी क्रूरान या अजान के अस्तित्व के बने।    
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मैं लिखता चला जा सकता हूँ। प्रथमदृष्टया असम्भव प्रतीत होती इन बातों के बिना भारत का कल्याण नहीं होना। आने वाली सरकार किसी की भी हो, मेरी अपेक्षायें यही रहेंगी तथा इन्हें निकट भविष्य में कोई सरकार पूरा नहीं करेगी, मोदी सरकार भी नहीं। जो होना चाहिये, उसे बिना लाग लपेट के रखते रहना चाहिये, दृष्टि स्वच्छ बनी रहती है तथा जनचेतना भी । 
यदि मोदी भी नहीं करेंगे तो उनके समर्थन में इतना लगे क्यों? 
पहले की एक घटना सम्भवत: यहाँ बता चुका हूँ। पुराने समय में एक निर्धन सवा रुपया लेकर आपण गया। पंसारी के यहाँ जब भुगतान करने हेतु मोर्ही में हाथ लगाया तो पाया कि रुपया कहीं गिर गया था। उसने बची चवन्नी भी फेंक दी तथा बिना अन्न के ही घर लौट आया। पत्नी ने पूछा तो सच बताते हुये बोला कि रुपया गिर गया तो चवन्नी का क्या? उसे भी फेंक दिया ! उसकी पत्नी ने सिर पीट लिया कि कैसे करमजले से मेरा लगन हो गया! 
... मोदी को समर्थन उस चवन्नी को बचा लेने का उपक्रम है जिसमें आगे सवा के सवा क्या, सैकड़ा भी करने की आशा है, उत्साह है, कर्म है तथा सामर्थ्य भी। 

मोदी देश के पहले 'युवा' प्रधानमंत्री हैं जिनके तार 'भारत' से जुड़े हैं, जो इण्डिया से आने का न दम्भ रखते हैं, न ही चाहना। उनके पीछे न जातिवादी राजनीति कर सञ्चित अकूत खानदानी धन है, न ही नेहरू-गांधी खानदानी होने की सम्पदा। वे अपने लिये नहीं, अपने खानदान के लिये नहीं, देश के लिये जीत एवं करते हैं। वे पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं जिनसे भेड़ चराने वाले यायावर से ले कर अरबपती उद्योगपतियों तक, सबकी प्रशंसा एवं महती आकांक्षायें जुड़ती हैं। स्विस बैंकों में धन भरते हुये जनता के आगे 'मनरेगा' के रूप में टुकड़े नहीं उछालते। मोदी ने वह कर दिखाया है जिसे प्रतिमान व्यूहन paradigm shift कहते हैं। मोदी देश की प्रसुप्त सामर्थ्य को नेपथ्य से रंगमंच पर लाये हैं। मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत से जुड़े हर नाम, हर उपादान की प्रतिष्ठा बढ़ाई है। मोदी ने यह दिखा दिया है कि 'सशक्त' देश क्या होता है। भले हिन्दुत्त्व को ले कर उन्हों ने एक शब्द न बोला हो, मोदी के कारण ही आज सोशल से ले कर ओल्ड मीडिया तक, हिंदूवादी जन विविध प्रकार से अपने को अभिव्यक्त कर रहे हैं, लड़ रहे हैं। जाने कितने मञ्च बन चुके हैं। मोदी प्रधानमन्त्री रह गये तो ऊपर जो बातें लिखीं हैं, उनके लिये मार्ग शनै: शनै: बनेगा क्योंकि अंतत: होना उसी जनता के दबाव से है जो अनुकूल वातावरण में प्रक्रिया को वैसा बनायेगी।    
उनके कार्यकाल के बीच के तीन वर्षों में आप मेरी अनेक कटु उक्तियाँ पायेंगे क्योंकि परिणाम की बात नहीं, ऊपर जो लिखा है, उन पर कोई दिशा ही नहीं दिख रही थी। चौथे वर्ष तक विकल्‍पों की दरिद्रता स्पष्ट हो गयी, इस देश का दुर्भाग्य भी कि सवा अरब से भी अधिक जनसंख्या उनसे अच्छा कोई विकल्प नहीं ला पाई जब कि मोदी निश्चित गति से निश्चिंत बढ़ते गये। जो दिशा ली उसे शक्ति एवं सौंदर्य से भर दिया। 
लगता गया कि विपक्ष की आँख केवल एवं केवल सत्ता प्राप्ति द्वारा मोदी के प्रयासों से जुटी समृद्धि की लूट में है। लगता गया कि मोदी का रहना इस कारण आवश्यक है कि जो संवेग momentum बना है, वह न टूटे, जो समृद्धि आई है, जो कार्य चल रहे हैं, वे नष्ट न हों। देश एक दिन में नहीं बनते बिगड़ते, बिगड़े को बनाने में दशकों का तप लगता है तथा मोदी जैसा राजनीति में आज तपस्वी कौन है? 
मैंने निर्णय किया कि अपने निर्णय को टालते हुये चुनावों तक मोदी के पक्ष में ही लिखना है। जब युद्ध का निर्णायक क्षण आये तो उपस्थित रहना है तथा सम्पूर्ण समर्पण से पक्ष लेते हुये रहना है। आज जब कि अंतिम चरण के चुनाव समाप्त हो गये, मैं अपने स्थगित निर्णय को लागू करने जा रहा हूँ। इस मञ्च पर इस प्रारूप में मेरा यह अंतिम लेख है। जो मुझे पढ़ते हैं, वे एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक की अवधि में अवश्य ही एक बार देखते होंगे, उन्हें सूचना मिल जाये, इस कारण यह लेख तब तक रहेगा। तृतीया को जब कि चंद्र मूल नक्षत्र में होंगे, यह खाता अनुपलब्ध हो जायेगा। पूर्वाषाढ़ नक्षत्र मेरे लिये नये आरम्भ का समय होगा। 
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चुनाव परिणामों तक रुकने का कोई अर्थ नहीं है। रुका तो इस निर्णय को अनिवार्यत: परिणामों से जोड़ कर देखा जायेगा। लोकतंत्र में सरकार जनता चुनती है, एक बने बनाये पञ्जर की सीमाओं में रह कर चुनती है। जैसी जनता, वैसी सरकार। मोदी जी दुबारा आये तो सकारात्मक परिवर्तन संवेगी रहेंगे, नहीं आये तो भिन्न प्रकार के संघर्ष पुन: करने होंगे, उस स्थिति में लगा कि मैं एक गिलहरी की भाँति तुच्‍छ योगदान कर सकता हूँ तो अवश्य आऊँगा। अभी तो अपनी सीमाओं का पूरा ज्ञान हो चुका है तथा जब सीमायें ज्ञात हो जायें तो नये क्षेत्र का संधान ही कर्तव्य होना चाहिये - चरैवेति, चरैवेति। यहाँ मेरा लिखा पानी के बुलबुले की भाँति ही होता है - स्थायी प्रभाव से हीन। मेरी तो है ही, सीमा मञ्च की भी हो सकती है, लोगों की भी या संयुक्त प्रभाव भी, परंतु है तो है।  
धन्यवाद फेसबुक प्रबंधन को कि अपनी सेटिंग इतनी तगड़ी रही कि एक दशक लम्बे साथ में कभी न छुट्टी पर भेजा, न ही ब्लॉक किया! अपनी बात रखने हेतु मञ्च प्रदान किया, भले कभी कभी कष्ट भी दिया। 
आप सबसे बहुत कुछ सीखा। आप लोगों से बहुत प्रेम एवं सम्मान मिला। जाने कितने अद्भुत मित्र एवं समर्थक मिले, ऐसे कि एक बार मिला तक नहीं, किंतु कहने पर बहुत कुछ कर गये! उन्हें आभार कहने में भी संकोच होता है। 
मेरे कहने पर केवल साँस भर लेते सुधर्मा संस्कृत दैनिक पत्र हेतु लोगों ने अंशदान दिये। भले लघु हों, जाने कितने अभियानों में आप लोग पूर्ण समर्पण से लगे।
यहाँ रहते हुये पूर्णत: नि:शुल्क, पूर्णत: प्रचार मुक्त मघा पत्रिका की नींव पड़ी, भले धन एवं समय मेरा लगा, चल निकली तो आप लोगों के कारण, ऐसे मित्रों के कारण जो पीछे से बहुत कुछ सँभालते हैं - समानशीलव्यसनेषुसख्यम् । 
सनातन युवा न्यास स्थापित हुआ तो आप लोगों के कारण। जब भी माँगा, लोगों ने पूर्ण विश्वास के साथ आर्थिक योगदान भी किये। आप सबका आभारी हूँ कि ये दोनों आगे भी अपने लक्ष्य हेतु लगे रहेंगे। 
श्रीरस्तीति रोहित शुश्रुम पापो नृषद्वरो जन इन्द्र इच्चरतः सखा चरैवेति चरैवेति ...  


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एक अन्तिम बात जिसे आप मेरे कल्पनाशील मन की उपज मान उपेक्षित भी कर सकते हैं। इस बार के चुनाव परिणामों को लेकर जब सामान्य जन को इतनी उत्कण्ठा है कि उसने स्वयं ही आगे बढ़ प्रचार किया है, तो उसे कितनी होगी जिसके सिर इन समस्त अपेक्षाओं एवं उत्कण्ठाओं का भार है? सरकार के पक्ष में मुझे नहीं लगता कि जनता ऐसे कभी मुखर हुई थी। अपने ऊपर जो अपेक्षाओं का गम्भीर भार है, उसे मोदी जानते समझते नहीं होंगे, ऐसा नहीं है। प्रज्ञा प्रकरण में मोदी ने जो कहा, वह सम्भवत: उनके अवचेतन की अभिव्यक्ति भी हो सकती है कि लोगों का आसक्ति भाव किञ्चित घटे जिससे कि सम्भावित वैपरीत्य में व्यक्तियों द्वारा निराश प्रतिक्रियाओं की तीव्रता तनु हो। मोदी को ले कर कुछ लोग चरम भावुकता में हैं। आप के बंधु, बांधव, मित्र, सम्बंधियों में ऐसे हों तो चुनाव परिणाम के दिन उन पर दृष्टि रखें, विपरीत परिणाम आने पर उन्हें सांत्वना दें। इस देश ने बहुत कुछ देखा है, इतना भंगुर भी नहीं कि पाँच वर्षों का आघात न सह सके! लोग अब जाग कर उठ चुके हैं, अवांछित सरकार द्वारा किये गये अवांछित कर्मों पर लगन से लड़ेंगे।        
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अग्ने व्रतपते व्रतञ्चरिष्यामि तच्छकेयन्तन्मे राध्यताम् । 
इदमहमनृतात्सत्यनुपैमि ॥ 

Saturday, May 18, 2019

उड़ते तीर


उड़ते तीर आँखों में न लें, दूरदृष्टि बनाये रखें।
...
इस धरा पर भाँति भाँति के लोग हैं। विविध रंग, रूप, वेश, भाषा, सामान्य स्वभाव आदि वाले तथा इनमें से प्रत्येक समूह का सकल मानवता को कुछ न कुछ दाय अवश्य है, सबके सिर कोई न कोई उपलब्धि अवश्य है। यहाँ तक कि पाकिस्तान भी वैश्विक आतंकवाद का पालना है। प्रलय में सब लय हो जायेंगे किंतु तब तक प्रत्येक मानव समूह का यह कर्तव्य है कि अपना दाय सम्पूर्ण समर्पण एवं सतत उत्कृष्टता के साथ मानवता को अर्पित करता रहे। विवेकानंद के कहा था कि भारत का दाय धर्म है। इसका अर्थ यह नहीं कि भारत भौतिक प्रगति नहीं करेगा, अवश्य करेगा परंतु उसका सिरमौर धर्म ही रहेगा।
कभी पुरातन पर्सिया तक भारत की सीमा थी। तुर्की, तुर्कमेनिस्तान, कजाक आदि से भी उत्तर तक आप के अवशेष आज भी पाये जाते हैं। मेसोपटामिया तक आप के सार्थवाह एवं व्यापारी अपना ध्वज लहराते थे। धर्म कटता गया, आप कटते गये। आज कश्मीर अनमन आप के साथ है। पञ्जाब पर खालिस्तान एवं इसाइयों का दबाव है, केरल एवं बंगाल देख ही रहे हैं। तमिलनाडु प्रशांत ज्वालामुखी है, जाने कब भभक उठे।
धर्म वह है जो प्रवाहित रहे। उपनिषदों का चरैवेति चरैवेति ऐसे ही नहीं है। चलेंगे तो प्रवाह होगा, परिवर्तन भी। पहले चलना सुनिश्चित करना होता है तथा आगे दिशा। हम चूकते चले गये जिसे आज की स्थिति से भी समझा जा सकता है।
विश्व की १३० अरब जनसंख्या आगे पाँच वर्ष अर्थात एक वैदिक युग कैसे रहेगी, इस हेतु चुनाव चल रहे हैं तथा हम कूड़े के ढेर में सभ्यता का उत्खनन कर रहे हैं! विश्व की धर्मध्वजा भारत गांधी, गोडसे, साध्वी, मोदी से बहुत अधिक महत्त्व रखता है। आप सभ्यता के युद्ध में हैं। युद्ध के निर्णायक क्षणों की दुविधा, भ्रम आदि घातक होते हैं। एक दिन, एक घण्टा, कुछ मिनट ही बहुधा बड़ा दु:खद भावी गढ़ देते हैं। पहले भी हुआ, आज भी हो रहा है कि ध्यान वास्तविक समस्याओं से हट कर अपने स्वार्थ, अहंकार, जाति, क्षेत्र आदि पर सिमट जाता है जब कि उनका भी हम भला नहीं कर रहे होते हैं। अधिक दिन नहीं बीते जब 'कोई माई का लाल' एवं एक विधेयक विशेष जैसे तीरों को आँखों में ले मध्यप्रदेश, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ भारतद्रोही शक्तियों को एक युग भर शासन हेतु दे बैठे! वहाँ कितने अच्छे परिवर्तन हो गये हैं या हो रहे हैं, वे तो वहाँ के वासी ही बतायेंगे किंतु होगी वह निकट दृष्टि ही।
आप का धर्म, आप का एकमात्र देश एवं आप की एकमात्र भूमि सुरक्षित फलती फूलती रहेगी तभी आप की भावी संततियाँ एवं आप का वर्तमान भी फले, फूलेगा। आप की जाति, आप की भाषा, आप के स्वार्थ आदि तब ही सधेंगे जब अनुकूल शासन तंत्र होगा। दूर की सोचें कि मेवात हो, कैराना हो, श्रीनगर हो या बंगाल के वे क्षेत्र जहाँ से सार्वजनिक घोषणा एवं हिंसा के साथ हिंदुओं को पलायन को विवश किया जा रहा है; आज भारत में अनेक 'दारुल इस्लाम' हैं। आइसिस की घोषणा ऐसे ही नहीं है, वास्तविकता बहुत भयानक है तथा इसाई 'हिंदू आत्माओं की कटाई' में लगे हुये हैं। हजारो एकड़ भूमि मौन रहते हुये चर्च द्वारा क्रीत की जा रही है। इन सबके समक्ष पण्डिज्जी, बाबू साहब, यादव जी या महतो जी के क्षुद्र अहम कहीं नहीं ठहरते।
विचार करें कि मानसिक शीघ्र पतन के स्वभाव ने आप की क्या दुर्गति की है। जातिगत अहंकार एवं स्वार्थजन्य गुटसृजन से आप का कितना भला हुआ है, देश का कितना हुआ है! आँखें खुली रखें, मन को बली एवं तार्किक तथा मस्तिष्क को चैतन्य; आने वाले दिन कठिन परीक्षा के हैं। उलझें न, उलझायें न, अटकें न, अटकायें न। शत्रु का अनुवर्तन न करें।

Friday, May 17, 2019

प्रतिमाओं में अनावृत्त स्तन

 
प्रतिमाओं में अनावृत्त स्तन दर्शाने का अर्थ यह नहीं कि कञ्चुक पहने ही नहीं जाते थे! उसका सम्बन्ध प्रतिमा सौन्दर्यशास्त्र से है जिसमें स्त्री हो या पुरुष, उभरे अंगों के ज्यामितीय सौन्दर्य को उभार कर विविध मुद्राओं में प्रस्तुत किया जाता था। मात्र शिल्प में ही नहीं, साहित्य में भी यही था। स्त्री यदि सुश्रोणी थी तो पुरुष भी वृषभस्कन्ध कहा जाता था।
स्तन एवं नितम्बों का सम्बन्ध मातृत्व से है। कुछ आधुनिक शोध भी देखियेगा कि curvaceous देह वाली स्त्रियाँ शिशु प्रजनन में अधिक समर्थ एवं लालन पालन में उन्हें अधिक सन्तुष्टि देने वाली होती हैं। आदि शंकर के स्तोत्र हों या किसी अन्य के; माता के अंग वर्णन में जो शिशु भाव है, उसे आप जैसी आधुनिकायें नहीं समझ सकतीं।
उत्तर में तो पुराना कुछ बचा ही नहीं, दक्षिण की पूजा प्रतिमाओं को देखियेगा, पुष्ट गोल स्तनों के चूचुक वस्त्र की एक तनु अलंकृत पट्टिका से ढके होते हैं। न, न, न, ऐसा इस कारण नहीं है कि न्यूनतम छिपाव रखना था या शिल्पी को कोई लज्जा थी।
आप का बच्चा तो गोद में रहता नहीं, चक्रपालने में ढोया जाता है। यदि उसे अपनी गोद में रखतीं, गोद का अर्थ जानतीं तो समझ पातीं। चलिये, बता देते हैं।
बच्चा जब रूदन करता है तो भोजपुरिया माँ उसे 'कोरा' में ले लेती है। कोरा संस्कृत का क्रोट है जिससे गोद भी बनी है।
क्रोट वह क्षेत्र होता है जो स्तनों को मध्य से बाँहों द्वारा घेरने से बनता है। उसमें शिशु जीवनदायिनी माँ के दुग्ध स्रोत के निकट होता है तथा उसके लिये वह सबसे सुखदायी क्षेत्र होता है, दूध पिये या न पिये।
जगज्जननी के हाथ तो आशीर्वाद मुद्रा में होते हैं। क्रोट या कोरा या गोद की पूर्ति उस अलंकृत पट्टिका से की जाती है जिससे कि भक्त उनके समक्ष हो तो शिशु एवं मातृभाव का एका हो जाय। हाँ, वह पाषाण प्रतिमा मात्र नहीं, प्राणप्रतिष्ठित साक्षात जननी होती है।
क्या है कि आप पूर्णतः भिन्न एवं निकृष्ट मञ्च पर हैं, वहाँ से उतरने पर भोग एवं भोजन, दोनों के लाले पड़ जायेंगे। उतरें न किन्तु अपना मुखविवर घृणित स्थापनाओं हेतु न खोलें।


Monday, May 6, 2019

अक्षय तृतीया पर : तीन अभिशप्त राम


पारम्परिक इतिहास में तीन राम हुये हैं :
(1) भृगुवंशी महर्षि जमदग्नि के पुत्र जामदग्न्य राम।
(2) इक्ष्वाकुवंशी दशरथ के पुत्र दाशरथि राम।
(3) वृष्णिवंशी वसुदेव के पुत्र वासुदेव राम।

उल्लेखनीय है कि तीनों दशावतार में आते हैं तथा भारतीय इतिहास का यह विचित्र सत्य है कि तीनों के कथानक को या तो स्वार्थ वश या कलह में या जातिवाद के प्रभाव में या समय की माँग के अनुसार कलंकित कर दिया गया जिनसे उनका मूल चरित्र ही दूषित हो गया तथा आज परम्परा के जड़ अनुयायी इस कार्य के औचित्य को सिद्ध करने हेतु जाने कितनी व्याख्यायें रचते हैं किंतु मूल ग्रंथों के वर्णन में सत्य झाँकता ही रहता है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता।

भार्गवों के ऋग्वैदिक आप्री सूक्त के पिता के साथ संयुक्त द्रष्टा राम जामदग्न्य को प्रतिहिंसक, क्रूर एवं अहंकारी 'परशुराम' बना दिया गया जिसने इक्कीस बार धरा से क्षत्रियों का संहार किया तथा निर्दोषों के रक्त से समंतपञ्चक क्षेत्र में पाँच कुण्ड भर दिये।
उस रक्त से ही उन्हें पितरों का तर्पण करने वाला बताया गया। यह राम गर्भस्थ शिशुओं का भी संहार कर डालता है!

रावण जैसे नृशंस एवं बर्बर राक्षस का संहार करने वाले दाशरथि राम से द्वेष वश पत्नी सीता की अग्निपरीक्षा दर्शाई गयी तथा उसके लिये मानवीय रामायण में असम्भव दिव्य प्रसंग जोड़ा गया। उतने से संतोष न हुआ तो पुन: धोबी के कहने से त्याग कराया गया तथा अंतत: पुन: सतीत्व की परीक्षा देने से पूर्व ही सीता द्वारा भूमि प्रवेश दर्शाया गया। किसी भी उदात्त पुरुषोत्तम चरित्र को दूषित करने का ऐसा उदाहरण इतिहास में नहीं मिलेगा।

आख्यानों एवं पुराणों की कुशीलव परम्परा में यश:गान करने वाले सूत लोमहर्षण से ऋषियों ने भी पुराण सुने एवं सीखे। सूत तो प्रतिलोमज होता है, कैसे सहन होता? तब तीसरे अवतार वासुदेव संकर्षण राम द्वारा मद्यपान एवं विहार की स्थिति में सूत का वध दर्शाया गया, तब जब कि वह ऋषियों को कथा सुना रहे थे।
बलराम कहे जाने वाले संकर्षण के मुख से उनका यह अपराध बताया गया कि नीचकुलजन्मा हो कर ऋषियों से आदृत होता उन्हें कथा सुनाता है!
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अक्षय तृतीया का उद्देश्य जो हो, अब यह तिथि इन तीन अवतारी रामों पर लगी कालिख को मिटाने हेतु प्रयुक्त होनी चाहिये।