Tuesday, August 25, 2020

वर्ष कैसे? नक्षत्र, राशियाँ आदि कैसे और क्यों?


किशोरों हेतु। बालकों एवं किशोरों के लिये लिखना संसार का सबसे कठिन काम है। वही अच्छे से कर पाते हैं जो या तो मन से बड़े सरल होते हैं या बड़े ही घाघ। मेरे जैसे साधारण व्यक्ति हेतु यह कठिन काम है, तब भी प्रयास करता हूँ।
देखो, मनुष्य की मेधा जब विकसित हो गई तो वह देह व परिवेश पर विविध प्रभाव डालने वाली ऋतुओं के आने जाने के निश्चित क्रम व समय पर दुहराव पर ध्यान देने लगा। सबसे स्पष्ट ऋतु थी वर्षा जब तपते आकाश से पानी झमाझम बरसने लगता।
उसने पाया कि ऊपर आकाश में दो पिण्ड ऐसे हैं जिनसे ऋतुओं के आने जाने का गणित जाना जा सकता है, दिन में सूर्य तो रात में चंद्रमा। चंद्रमा घटता बढ़ता तो उसके एक पूरे गोले से दूसरे गोले तक होने में पता चला कि २९ से ३० के बीच सूर्योदय होते हैं। ऐसे १२-१३ बार होने पर वर्षा ऋतु पुन: आ जाती। इन कुल ३५४ दिनों को क्या नाम दें? बरखा रानी पर ही रख दें? नाम रखा गया - वर्ष ।
मनुष्य की मानसिक क्षमता बढ़ती गयी तो आगे उसे यह भी लगा कि १२ - १३ पूर्णिमा से अच्छा गणित तो उस समय में है कि जब ऋतु सुखदायी हो, चारो ओर फूल खिल रहे हों, नई पत्तियाँ हों। तब तक मनुष्य वस्त्र पहनने लगा था। उसे लगा कि उस विशेष ऋतु में पेड़ पौधे भी पुराने वस्त्र उतार कर नये पहन लेते हैं। उसका नाम रखा गया - वसंत। उस समय ऐसा भी होता कि एक विशेष दिन अन्य दिनों की तुलना में सूरज इधर उधर का झुकाव तज ठीक नाक की सीध में उगता। उस दिन रात और उजाले के समय भी सम होते। ऐसा वर्ष में दो बार होता किंतु विशेष ऋतु वसंत और इस विशेष स्थिति का यह योग लगभग ३६६ दिनों में आता। उसने इसे नाम दिया - विषुव, वसन्त विषुव ।
तब तक किसी भारतवासी को यह भी पता लग चुका था कि विशेष प्रभाव वाली ऋतुयें ६ होती हैं। गणना की क्षमता बढ़ ही चुकी थी तो ३५४ और ३६६ का औसत निकाला गया ३६०। यह संख्या जादू वाली थी। ३० से बँट जाती, ६ से बँट जाती, १२ से भी बँट जाती। ३० तो चंद्रमा से ही पता चला था, उसे नाम दिया चंद्रमास या मास। १२ - १३ के लगभग से ठीक ठीक १२ का सूर्य से ही पता चला था तो ३०-३० के १२ आदित्य बने जोकि सूर्य का भी नाम है। बड़ी अच्छी बात थी कि १२x३० = ३६०। तीस तीस के बारह आदित्य बारह मास के नाम हो गये। सूर्यनमस्कार में हैं न बारह नाम!
तब तक मनुष्य आकाश निहारने की कला में प्रवीण हो चुका था। उसने पाया कि चंद्रमा के रात का पथ दिन में सूर्य के पथ के लगभग साथ ही होता है। यह भी पाया कि जो तारे थे, वे सब मिल कर भिन्न भिन्न आकार बनाते थे तथा वे आकार कभी परिवर्तित नहीं होते थे अर्थात सूर्य चंद्र की तुलना में तारे स्थिर थे। उसने आकारों को नाम दे दिये जैसे सूँड़ जैसी आकार वाली आकृति इंद्र देवता की सवारी हाथी ऐरावत हो गयी। कुछ ने उसमें बिच्छू देख लिया, कहीं भालू मिल गया तो कहीं राजा का सिंहासन।
चंदा भी बड़ा चञ्चल था। गोले से घटते घटते एक समय जाने कहाँ चला जाता और अगले ही दिन से पुन: थोड़ा थोड़ा बढ़ते हुये दिखने लगा। एक पूरे से एक विलोपन तक का समय मास का आधा था जिसे नाम दिया गया पक्ष। एक वर्ष में हो गये २४ पक्ष।
आकाश को आज के कैलेण्डर की भाँति प्रयोग किया जाने लगा। चंद्र के पथ को २४ भागों में बाँट कर विशेष तारों के नाम पर उनके नाम रख दिये गये। बताने में सुविधा हो गयी कि चंद्र अमुक भाग में है आज तो कल दूसरे वाले में होगा।
किंतु एक बात और भी थी कि स्थिर व विशिष्ट तारों वाले किसी भाग विशेष पर चंद्र पुन: २७ से कुछ अधिक दिन में पहुँचता। अत: ठीक ठीक स्थिति बताने के लिये चौबिस में से तीन के दो दो भाग, पूर्व व उत्तर, कर कुल २४+३ = २७ भाग बना दिये गये। इन्हें नाम दिया गया नक्षत्र, नक्ष कहते हैं निकट आने को, ये भाग सूर्य व चंद्र के पथ के सदैव निकट थे, इनका कभी क्षरण नहीं होता था, इस कारण भी कहलाये नक्षत्र।
कुछ लोग इन ज्ञानियों से भी चतुर थे कि यदि २७ से कुछ अधिक दिन लगते हैं तो क्यों न एक अंश ले कर २८ भाग बना दिये जाँय! किंतु २८ पूरा तो होता नहीं था। उससे निपटने हेतु अंश की व्यवस्था की गयी।
गाय चार पाँवों पर खड़ी होती है। पाँव संस्कृत शब्द पाद से बना है। यह पाया गया कि नक्षत्र आधारित मास २७ पूरे दिनों से एक दिन के लगभग लगभग चौथाई भाग इतना अधिक होता है जिसे यह कहा गया कि अट्ठाइसवें नक्षत्र को चार में से केवल एक पाद का अर्थात चौथाई भोग ही मिले तथा उसकी हेठी न हो, इसलिये उसका सबसे अच्छा नाम रखा गया, सबसे शुभ - अभिजित, सदा विजयी।
परंतु काल भला मानव के बाँधने से बँध पाया कभी? वास्तव में कथित अभिजित का समय चौथाई दिन से थोड़ा अधिक होता था २७+(१/‌४)= २७.२५ न होकर २७.३। यही स्थिति अन्य की भी थी। वर्ष ३६५ या ३६६ न हो कर ३६५.२५ दिनों का होता, घटती बढ़ती कलाओं के सापेक्ष मास ३० का न हो कर २९.५ दिन में ही पूरा हो जाता।
इन सबके समाधान के लिये गणित की जटिल प्रक्रियायें बनाई गईं। रुचि हो तो और आगे की पढ़ाई में यह विषय ले लेना। अभी तो इसे ही ढंग से समझने का प्रयास करो।

Saturday, June 20, 2020

galwan valley conflict गलवान घाटी : सीमाओं पर योद्धा डटे हुये हैं!

galwan valley conflict
सर्वदलीय बैठक हो गई किंतु चीनी आक्रमण पर अभी भी भिन्न भिन्न बातें चल रही हैं। जैसा कि होता ही है, धैर्य व बुद्धिमत्ता तज उत्तर के हीनुओं से ले कर दक्षिण के प्रज्ञाशत्रु तमिळ तक समस्त टिकटाकिये चिम्पिये लगे हुये हैं। सरल शब्दों में समझते हैं: (1) जम्मू व काश्मीर को आधिकारिक रूप से दो भागों में बाँट कर गिलगित, बाल्टिस्तान व अक्षय चिन को नवनिर्मित लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश में सम्मिलित किया गया। इसके साथ ही चीन व पाकिस्तान से सम्बंधित विवादित क्षेत्रों का बहुत बड़ा भाग सीधे केंद्रीय शासन में आ गया। कथित कश्मीरियत का जो परोक्ष इस्लामी प्रभाव कूटनीतिक रूप से इस क्षेत्र पर था, वह एक झटके में 'बौद्ध' हो गया। इसे चीन व पाकिस्तान ने बहुत अच्छे से समझा। कश्मीर की विशेष स्थिति बनाये रखने के नेपथ्य में ऐसे जुड़े पक्ष भी थे जो एक झटके में स्वाहा हो गये। (2) इस लद्दाख के पश्चिमी क्षेत्र अक्षय चिन Aksai Chin को भारत आधिकारिक रूप से अपनी भूमि मानता है जो चीन के अवैध अधिकार में है। इसी प्रकार पूर्वी गिलगित व बाल्टिस्तान आदि को भारत आधिकारिक रूप से अपनी भूमि मानता है जो पाकिस्तान के अवैध अधिकार में हैं। (3) जो भूमि जिसके अधिकार में है, उस पर वह जो करना चाहे, करेगा। आप रोक नहीं सकते क्योंकि आप का अधिकार है ही नहीं! जिस प्रकार गिलगित व बाल्टिस्तान में चल रही परियोजनाओं को, चाहे सैन्य हों या असैन्य, आप नहीं रोक सकते, उसी प्रकार अक्षय चिन में भी नहीं रोक सकते। (4) चीन जो कुछ भी कर रहा है, अपने अधिकार क्षेत्र में कर रहा है, वास्तविक नियंत्रण रेखा LAC से लगे अपने भाग में कर रहा है जो कि आधिकारिक रूप से आप का है किंतु वास्तव में नहीं है। आप के घर पर कोई बलात स्थापित हो जाये तो कील ठोंके या बोरवेल बनवाये, आप कुछ नहीं कर सकते। वैसी ही स्थिति है। (5) जब प्रधानमंत्री ने कहा कि चीन हमारी भूमि पर नहीं प्रविष्ट हुआ है व हमारा कोई धाक उसके नियंत्रण में नहीं है तो इसका अर्थ है कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा से इधर नहीं आया है, अक्षय चिन में तो वह पहले से ही है। (6) अक्षय चिन हो या गिलगित बाल्टिस्तान, उनके निर्माण कार्य रोकने का एक ही मार्ग है - संधि द्वारा या आक्रमण कर भूमि पुन: ले ली जाय। उस स्थिति में वहाँ जो भी निर्माण कार्य हुये होंगे, हमारे होंगे। संधि से तो मिलने से रहे, युद्ध ही एकमात्र उपाय है। समझ गये? (7) हम क्या कर सकते हैं? हम अपने सीमावर्ती क्षेत्रों में द्रुत गति से सामरिक व नागरिक निर्माण कार्य कर सकते हैं जोकि विगत छ: वर्षों से युद्ध स्तर पर चल रहे हैं, जिन पर विदूषकों के शासन काल में या तो नगण्य प्रगति हुई या सोचा तक नहीं गया! हम अपनी सैन्य मारक क्षमता बढ़ा सकते हैं। उस पर भी काम चल रहा है। हम LAC से आगे बढ़ने के उनके प्रत्येक प्रयास का मुँहतोड़ उत्तर दे सकते हैं जोकि किया जा रहा है। हम कूटनीतिक स्तर पर चीन व पाकिस्तान को घेरने के प्रयास कर सकते हैं। वह भी किया जा रहा है। यह बात और है कि यह बहुत ही मंद गति से बढ़ने वाला काम है जिसकी अनिश्चितता बहुत अधिक है। तिब्बत, हांगकांग जैसे उदाहरण आप के समक्ष हैं। कोई भी देश आपके लिये टैंक व शस्त्रास्त्र ले कर चीन या पाकिस्तान से नहीं भिंड़ेगा, इतना तो आप समझते ही होंगे। (8) राष्ट्रीय स्तर पर आधिकारिक स्पष्टीकरण के पश्चात भी यदि आप उन क्षेत्रों में निर्माण कार्य रुकवाना चाहते हैं जो चीन या पाकिस्तान के अधिकार में हैं तो इसका सीधा अर्थ है कि आप चाहते हैं कि भारत चीन या पाकिस्तान पर आक्रमण करे। और कोई उपाय तो है नहीं। समस्या यह है कि आप स्पष्ट हैं ही नहीं या आप को मनोरञ्जन व रोमाञ्च का एक और अवसर मिल गया है या आप जानते ही नहीं कि आप चाहते क्या हैं? या जानते भी हैं तो यह नहीं जानते कि उसकी लब्धि कैसे होगी? उसके लिये निर्वाचित सरकार है, सेनायें हैं, विशेषज्ञ हैं; उन पर विश्वास कीजिये। विश्लेषण चलता रहे, टोका टोकी होती रहे, लोकतंत्र में आवश्यक हैं किंतु अपनी सीमाओं का ज्ञान होना भी आवश्यक है। यह बात और है कि चीन में लोकतंत्र है ही नहीं। वहाँ हान जाति का अधिनायकवाद है और आप के यहाँ 2700 से अधिक जातियाँ हैं, सबके अपने अपने परशु हैं, कोई किसी से उन्नीस नहीं और राम की किसी को पड़ी नहीं! इन बड़े ही मूलभूत अंतरों के मर्म आपकी बौद्धिक सीमा के बाहर हैंउसी काम तक सीमित रहें जो आप कर सकते हैं, बाइक उठाइये और वहाँ पहुँचिये जहाँ कोरोना काल से लड़ने हेतु मनरेगा में अतिरिक्त फण्ड आया है, पचास प्रतिशत तो आप का बनता ही है न! उसका त्याग न करें, सीमाओं पर योद्धा डटे हुये हैं!

Sunday, June 14, 2020

American White Guilt, भारत का भविष्य - वरेण्य क्या है?


https://www.facebook.com/vitaliy.dzyuba/videos/10217440508261655/ 

ऊपर का विडियो देखें, श्वेत महिला कालों के जूते चूम रही है! 
श्वेत अपराधबोध की परिणति यही होती है। संसार में जितना अत्याचार, लूट व विनाश दोनों अब्राहमिक पंथों ने किया, उतना किसी अन्य पन्थ ने नहीं। क्या कारण है कि इसाइयों में अपराधबोध घर कर गया जबकि मुसलमान अपने पैशाचिक कृत्यों पर गर्व करते हैं? इस विडियो में बाइबिल की भविष्यवाणी का संदर्भ दे कर काले अपने इस कर्म का औचित्य बता रहे हैं। सनातनियों में भी ऐसे बहुत मिलेंगे जो 'कलिकाल' के बारे में की गयी भविष्यवाणियों को सच मानते हैं तथा संकुचित हो, बच बचा कर जीने व बच्चे बड़े करने में विश्वास रखते हैं। उन्हें ले दे कर यही उपयुक्त मार्ग लगता है, अपने 'ठीक' से जी लें, भविष्य हेतु राम रचि राखा है है!   
मानव मनोविज्ञान बहुत ही जटिल होता है, विश्लेषण तो बहुत किया जा सकता है किन्तु आवश्यकता प्रक्रिया के विश्लेषण की नहीं, परिणति के विश्लेषण की है। परिणति ही प्रक्रिया के उचित मार्ग को सुनिश्चित करे। यहीं विवेकानंद प्रासङ्गिक हो जाते हैं, जो निर्भयता, पौरुष और क्षात्रभाव की बातें करते पूरे जीवन सक्रिय रहे। उन्होंने सूत्र रूप में बड़ी बात कही कि जो कुछ भी मनुष्य को निर्बल करे, क्लीव बनाये वह विष के समान त्याज्य है।
श्वेत अपराधबोध की जड़ उनकी उस विषैले शिक्षातंत्र में है जो political correctness और कथित मानवताबोध का आधार ले कर वास्तव में वाम-विष सूक्ष्म रूप से विद्यार्थियों के मन में inject करता है और ठीक यही भारत में भी हो रहा है। हमारी पीढ़ी अपने मूल से कटी व आत्मघृणा में पगी नयी पीढ़ी से साक्षात हो रही है। अगले बीस वर्षों में भारत में भी ऐसा दिखने लगे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिये।
शिक्षा ही मनुष्य को मनुष्य बनाती है और दुर्भाग्य से हमारा पूरा शिक्षातंत्र विषैला है जिसके उपचार हेतु कुछ नहीं किया जा रहा, कुछ भी नहीं।
मुसलमान भी उसी शिक्षातंत्र से हैं किंतु हममें से अत्यल्प ने उनकी मजहबी शिक्षापद्धति की पकड़ उनके परिवारों पर देखी है। वैसे भी हमारा शिक्षातंत्र उन्हें पीड़ित व शोषित ही चित्रित करता है, जो उनके एजेण्डे के अनुकूल ही पडता है। दलहितैषी हों या मुसलमान, इस कारण ही मीम-भीम हो जाते हैं।
इसाई संसार में चर्च के प्रति दुराव व उपेक्षा बढ़ रहे हैं जिसकी क्षतिपूर्ति वे कथित १०/४० पट्टी की येन केन प्रकारेण, धूर्तता, कपट आदि के द्वारा मतांतरण से कर रहे हैं।

उत्तरी अक्षांश दस से चालिस के बीच की पट्टी को विश्व मानचित्र पर देखें, इसमें वह जनसंख्या निवास करती है जो हिंदू है, बौद्ध है, अनाब्रहमी है। चूँकि मतांतरण अभियान की धन आपूर्ति का सोता श्वेत अपराधबोध ग्रस्त क्षेत्रों से ही है, इनका मार्ग प्रत्यक्ष न हो कर अप्रत्यक्ष है और 'धीमे किंतु निश्चित' पर विश्वास करता है।
मुसलमानों का मार्ग भिन्न है - 'जनसंख्या उत्पादन' व 'इलाका जिहाद' का। चुपचाप जनसंख्या बढ़ाते हुये किसी भी क्षेत्र विशेष में सामान्य अपराधवृत्ति द्वारा बहुसंख्यकों में भय भरो जिससे वे पलायन को बाध्य हो जायें और इस प्रकार टुकड़ा टुकड़ा दीन की फतह होती रहे। कैराना, मेवात, आजमगढ़, दिल्ली, हैदराबाद, मुम्बई आदि के कुछ बड़े भाग ऐसे ही दारुल इस्लाम है जहाँ पुलिस क्या, सेना भी जाने से पूर्व बड़े उपाय करेगी। बिजली मीटर की रीडिंग नहीं ली जाती, जो बता दे मियाँ वही लिख लो और दफा हो। यही स्थिति जनगणना के समय होती है।
हम और हमारे आप के बच्चे क्या कर रहे हैं? सारे पंथ एक समान, धर्म अफीम है, सभी बुरे एक हैं जैसी मूर्खताओं को आँखें मूँदे चयनित रूप से लागू कर रहे हैं। कोई जगा हुआ कुछ कहता है या स्वर उठाता है या तो घर परिवार वाले ही चुप करा देते हैं या दीनियों द्वारा जिबह कर दिया जाता है, एक को मारो एक लाख आतंकित होंगे, भारतीय न्याय व्यवस्था  का क्या, तारीख पर तारीख के पश्चात अन्तत: छूट ही जाओगे, जिहाद का सवाब तो मिलना ही है।
ऐसे में - 
- अपने शास्त्रों का स्वयं अध्ययन करें तथा बच्चों को भी करवायें। उनमें भी ऐसा बहुत कुछ है जो अब अप्रासंगिक है, सार्वकालिक नहीं तथा जिसका महत्त्व अकादमिक अध्ययन के अतिरिक्त कुछ नहीं है, उसकी उपेक्षा करें। ऋषि मुनि मांसाहारी थे या नहीं, परशुराम ने २१ बार सभी क्षत्रियों का समूल नाश किया या ९९ बार, सबका किया या केवल अत्याचारियों का, ब्राह्मणों ने सबका शोषण किया जैसी गौण बातें आपके विमर्श के केंद्र में हैं। विश्लेषण ठीक है किंतु ज्वलंत व मुख्य समस्याओं से मुख मोड़ कर एक सीमा से आगे इन्हीं सब में रत रहना आत्मरति को जन्म देता है, भौंड़े ढंग से कहें तो हस्तमैथुन समान जिससे कुछ नहीं उपजना सिवाय क्षणिक मजे के! 
जातिवादी आग्रह व अन्य जो कलुष हैं यथा शाकाहारी होने पर स्वयं को धरा से ऊपर का देवता मानना तथा मांसाहारियों को पतित मानना, समस्या की विराटता से मुँह मोड़ कर व्यर्थ के वितण्डे में पड़ना, अपने आग्रहों हेतु तोड़ मरोड़ करना, झूठ व कपट का आश्रय लेना आदि इत्यादि से दूर रहें।
- सब पंथ एक समान; सानूँ की; धर्म अफीम है; स्त्रियाँ, कथित दलित व कथित अल्पसंख्यक आदि सभी बहुत पीड़ित प्रताड़ित हैं; हम श्रेष्ठ हैं क्योंकि विशेष रज-वीर्य से उपजे हैं; सभी अपनी अपनी जाति आधारित गोलबंदियों में लगे हैं, हम क्यों नहीं? हमें पाँच हजार वर्षों से दबा कर रखा गया आदि इत्यादि मूर्खतापूर्ण आग्रहों को त्याग दें और ढंग से सोचने का अभ्यास करें कि संकट है और आप न चाहते हुये भी युद्ध में हैं।
- सक्रिय प्रतिरोध हेतु (प्रतिक्रिया मात्र नहीं) लगें रहें तथा बच्चों व युवाओं को भी लगायें। प्रतिरोध आत्मघाती व मूर्खतापूर्ण आवेगी कर्म न हो कर, सुविचारित व दूरदृष्टि युक्त हों जिनसे तात्कालिक व दूरगामी सुरक्षा तो सुनिश्चित हो ही, उत्पातियों में भी स्थायी भय बना रहे।
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तस्मात् सर्वेषु कालेषु माम् अनुस्मर यथाशास्त्रम्। युध्य च युद्धं च स्वधर्मं कुरु। मयि वासुदेवे अर्पिते मनोबुद्धी यस्य तव स त्वं मयि अर्पितमनोबुद्धिः सन् मामेव यथास्मृतम् एष्यसि आगमिष्यसि असंशयः न संशयः अत्र विद्यते॥ 
॥ जय श्रीराम, जय योगेश, जय योगीश ॥
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Sunday, May 26, 2019

हिंदुत्व हेतु मोदी से बहुत आशा न रखें


हिंदुत्व हेतु मोदी से बहुत आशा न रखें, हिंदुत्व का हित हिंदुओं से होगा, सरकार से नहीं। मोदी सरकार इतना ही कर सकती है कि उनके उद्योग के आड़े न आये। आप ने उसे चुना जो उपलब्ध विकल्पों में सर्वोत्तम था किंतु वह आप के लिये पूर्णत: मनोनुकूल हो, आवश्यक नहीं।
उपलब्ध विकल्पों में मोदी का ही सर्वोत्तम होना आप की सीमा को दर्शाता है। हिंदुओं में धर्म, देश एवं अपनी नृजाति को ले कर उपेक्षा एवं उदासीनता बहुत है। स्थिति इतनी बुरी है, इतनी कि मोदी में ही आप अपनी समस्त आशाओं को देख पाने को अभिशप्त हैं जबकि मोदी जिस संगठन से आते हैं उसकी स्थापनायें बहुत स्पष्ट हैं तथा वह 'हिंदू' से ऊपर 'राष्ट्र' को रखता है, 'हिंदू' और 'राष्ट्र' में भेद भी। सोच में यह मौलिक अंतर बहुत महत्त्वपूर्ण है।
यह दुर्भाग्य ही है कि संघ के अतिरिक्त देश में हिंदुओं का ऐसा कोई संगठन नहीं है जो समांतर प्राथमिकतायें रखते हुये मोदी वाले 'संक्रमण दशक' से आगे स्पष्ट 'हिंदू राष्ट्र शताब्दी' पर केंद्रित हो।
हाँ, एक बात और, विकास एवं हिंदू राष्ट्र में कोई वैर नहीं। दोंनों परस्पर अपवर्जी एवं समांतर बातें हैं। निराश होने की आवश्यकता नहीं है. अपने स्तर पर हिंदू हित आप से जो भी हो सकता हो, व्यापक परिदृश्य एवं हितों पर केंद्रित रहते हुये करें। जैसे मोदी आये हैं, वैसे ही वह भी आयेगा जो हमें संक्रमण से मुक्त करेगा।

Sunday, May 19, 2019

असंशयविनाशात्‍संशयविनाश: श्रेयान्

नास्त्यनन्‍तराय: कालविक्षेपे। असंशयविनाशात्‍संशयविनाश: श्रेयान् ।
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(1) मतांतरण conversion राष्ट्रीय स्तर पर अवैध घोषित हो। 
(2) साम्प्रदायिक अल्पसंख्यक होने के लिये जनसंख्या प्रतिशत अधिकतम 5% तक निश्चित किया जाय। अल्पसंख्यक राज्य स्तर पर पारिभाषित हों। 
(3) नये धर्मस्थलों, कब्रस्थलों, मदरसों एवं पंथीय विद्यालयों के निर्माण नियमन हेतु एक राष्ट्रीय संस्था हो। 
(4) मंदिरों के प्रबंधन से सरकार हटे तथा सम्बंधित पुजारी एवं संरक्षकों के न्यास उनका प्रबंधन करें। 
(5) शिक्षा में बारहवीं तक केवल केंद्रीय पाठ्य पुस्तकें मान्य हों। मानविकी की एन सी आर टी की समस्त पुस्तकों को कूड़े में फेंक नया अ-वामकृत पाठ्यक्रम लागू हो। 
(6) पाठ्यक्रम परिवर्तन कर शिक्षा को अर्थकरी बनाया जाय। विद्यार्थियों का एक राष्ट्रीय डाटा बेस हो। 
(7) बी ए से ले कर एम बी ए तक, डिप्लोमा से ले कर इंजीनियरिंग तक पढ़े लिखों व्यर्थ के युवाओं की भीड़ न हो इस हेतु उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु चयन की एक कठिन मानक प्रक्रिया हो। जाने कितने करोड़ युवा मानव वर्ष भटकते युवाओं द्वारा रोटी के स्रोत के संधान में व्यर्थ हो जाते हैं। 
(8) छात्रसंघ चुनावों पर स्थायी प्रतिबंध हो।
(9) विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के आचार्यों का नियोजन स्थायी न हो कर समीक्षणीय हो - कितने अकादमिक पत्र छपे? अन्य क्या योगदान किये? विद्यार्थियों की गुणवत्ता में कितना सुधार हुआ आदि के निर्धारण हेतु तन्त्र हो। 
(10) उच्च शिक्षा पर छूट समाप्त हो। उद्योग एवं अन्य समृद्ध संस्थानों द्वारा केवल प्रतिभाशाली एवं योग्य छात्रों हेतु वृत्ति की व्यवस्था अनिवार्य की जाय। 
(11) अभियांत्रिकी शिक्षा में पाणिनीय व्याकरण अनिवार्य किया जाय। आरम्भ हाई स्कूल से ही हो जाय। 
(12) संविधान की भूमिका से पन्थनिरपेक्ष एवं समाजवाद शब्द हटा दिये जाँय। 
(13) न्यायाधीशों की नियुक्ति हेतु संविधान संशोधन कर नवीं अनुसूची में प्रक्रिया को सम्मिलित किया जाय। सभी रिक्त स्थान भरे जायँ तथा निर्णयों की समयसीमा निश्चित की जाय। वर्तमान का चाचा-भतीजा-यौनतुष्टि तंत्र समाप्त किया जाय।
(14) समान नागरिक संहिता लागू हो। 
(15) अयोध्या में श्रीराम का भव्य  मंदिर उनके जन्मस्‍थान पर बिना किसी क्रूरान या अजान के अस्तित्व के बने।    
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मैं लिखता चला जा सकता हूँ। प्रथमदृष्टया असम्भव प्रतीत होती इन बातों के बिना भारत का कल्याण नहीं होना। आने वाली सरकार किसी की भी हो, मेरी अपेक्षायें यही रहेंगी तथा इन्हें निकट भविष्य में कोई सरकार पूरा नहीं करेगी, मोदी सरकार भी नहीं। जो होना चाहिये, उसे बिना लाग लपेट के रखते रहना चाहिये, दृष्टि स्वच्छ बनी रहती है तथा जनचेतना भी । 
यदि मोदी भी नहीं करेंगे तो उनके समर्थन में इतना लगे क्यों? 
पहले की एक घटना सम्भवत: यहाँ बता चुका हूँ। पुराने समय में एक निर्धन सवा रुपया लेकर आपण गया। पंसारी के यहाँ जब भुगतान करने हेतु मोर्ही में हाथ लगाया तो पाया कि रुपया कहीं गिर गया था। उसने बची चवन्नी भी फेंक दी तथा बिना अन्न के ही घर लौट आया। पत्नी ने पूछा तो सच बताते हुये बोला कि रुपया गिर गया तो चवन्नी का क्या? उसे भी फेंक दिया ! उसकी पत्नी ने सिर पीट लिया कि कैसे करमजले से मेरा लगन हो गया! 
... मोदी को समर्थन उस चवन्नी को बचा लेने का उपक्रम है जिसमें आगे सवा के सवा क्या, सैकड़ा भी करने की आशा है, उत्साह है, कर्म है तथा सामर्थ्य भी। 

मोदी देश के पहले 'युवा' प्रधानमंत्री हैं जिनके तार 'भारत' से जुड़े हैं, जो इण्डिया से आने का न दम्भ रखते हैं, न ही चाहना। उनके पीछे न जातिवादी राजनीति कर सञ्चित अकूत खानदानी धन है, न ही नेहरू-गांधी खानदानी होने की सम्पदा। वे अपने लिये नहीं, अपने खानदान के लिये नहीं, देश के लिये जीत एवं करते हैं। वे पहले भारतीय प्रधानमंत्री हैं जिनसे भेड़ चराने वाले यायावर से ले कर अरबपती उद्योगपतियों तक, सबकी प्रशंसा एवं महती आकांक्षायें जुड़ती हैं। स्विस बैंकों में धन भरते हुये जनता के आगे 'मनरेगा' के रूप में टुकड़े नहीं उछालते। मोदी ने वह कर दिखाया है जिसे प्रतिमान व्यूहन paradigm shift कहते हैं। मोदी देश की प्रसुप्त सामर्थ्य को नेपथ्य से रंगमंच पर लाये हैं। मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत से जुड़े हर नाम, हर उपादान की प्रतिष्ठा बढ़ाई है। मोदी ने यह दिखा दिया है कि 'सशक्त' देश क्या होता है। भले हिन्दुत्त्व को ले कर उन्हों ने एक शब्द न बोला हो, मोदी के कारण ही आज सोशल से ले कर ओल्ड मीडिया तक, हिंदूवादी जन विविध प्रकार से अपने को अभिव्यक्त कर रहे हैं, लड़ रहे हैं। जाने कितने मञ्च बन चुके हैं। मोदी प्रधानमन्त्री रह गये तो ऊपर जो बातें लिखीं हैं, उनके लिये मार्ग शनै: शनै: बनेगा क्योंकि अंतत: होना उसी जनता के दबाव से है जो अनुकूल वातावरण में प्रक्रिया को वैसा बनायेगी।    
उनके कार्यकाल के बीच के तीन वर्षों में आप मेरी अनेक कटु उक्तियाँ पायेंगे क्योंकि परिणाम की बात नहीं, ऊपर जो लिखा है, उन पर कोई दिशा ही नहीं दिख रही थी। चौथे वर्ष तक विकल्‍पों की दरिद्रता स्पष्ट हो गयी, इस देश का दुर्भाग्य भी कि सवा अरब से भी अधिक जनसंख्या उनसे अच्छा कोई विकल्प नहीं ला पाई जब कि मोदी निश्चित गति से निश्चिंत बढ़ते गये। जो दिशा ली उसे शक्ति एवं सौंदर्य से भर दिया। 
लगता गया कि विपक्ष की आँख केवल एवं केवल सत्ता प्राप्ति द्वारा मोदी के प्रयासों से जुटी समृद्धि की लूट में है। लगता गया कि मोदी का रहना इस कारण आवश्यक है कि जो संवेग momentum बना है, वह न टूटे, जो समृद्धि आई है, जो कार्य चल रहे हैं, वे नष्ट न हों। देश एक दिन में नहीं बनते बिगड़ते, बिगड़े को बनाने में दशकों का तप लगता है तथा मोदी जैसा राजनीति में आज तपस्वी कौन है? 
मैंने निर्णय किया कि अपने निर्णय को टालते हुये चुनावों तक मोदी के पक्ष में ही लिखना है। जब युद्ध का निर्णायक क्षण आये तो उपस्थित रहना है तथा सम्पूर्ण समर्पण से पक्ष लेते हुये रहना है। आज जब कि अंतिम चरण के चुनाव समाप्त हो गये, मैं अपने स्थगित निर्णय को लागू करने जा रहा हूँ। इस मञ्च पर इस प्रारूप में मेरा यह अंतिम लेख है। जो मुझे पढ़ते हैं, वे एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक की अवधि में अवश्य ही एक बार देखते होंगे, उन्हें सूचना मिल जाये, इस कारण यह लेख तब तक रहेगा। तृतीया को जब कि चंद्र मूल नक्षत्र में होंगे, यह खाता अनुपलब्ध हो जायेगा। पूर्वाषाढ़ नक्षत्र मेरे लिये नये आरम्भ का समय होगा। 
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चुनाव परिणामों तक रुकने का कोई अर्थ नहीं है। रुका तो इस निर्णय को अनिवार्यत: परिणामों से जोड़ कर देखा जायेगा। लोकतंत्र में सरकार जनता चुनती है, एक बने बनाये पञ्जर की सीमाओं में रह कर चुनती है। जैसी जनता, वैसी सरकार। मोदी जी दुबारा आये तो सकारात्मक परिवर्तन संवेगी रहेंगे, नहीं आये तो भिन्न प्रकार के संघर्ष पुन: करने होंगे, उस स्थिति में लगा कि मैं एक गिलहरी की भाँति तुच्‍छ योगदान कर सकता हूँ तो अवश्य आऊँगा। अभी तो अपनी सीमाओं का पूरा ज्ञान हो चुका है तथा जब सीमायें ज्ञात हो जायें तो नये क्षेत्र का संधान ही कर्तव्य होना चाहिये - चरैवेति, चरैवेति। यहाँ मेरा लिखा पानी के बुलबुले की भाँति ही होता है - स्थायी प्रभाव से हीन। मेरी तो है ही, सीमा मञ्च की भी हो सकती है, लोगों की भी या संयुक्त प्रभाव भी, परंतु है तो है।  
धन्यवाद फेसबुक प्रबंधन को कि अपनी सेटिंग इतनी तगड़ी रही कि एक दशक लम्बे साथ में कभी न छुट्टी पर भेजा, न ही ब्लॉक किया! अपनी बात रखने हेतु मञ्च प्रदान किया, भले कभी कभी कष्ट भी दिया। 
आप सबसे बहुत कुछ सीखा। आप लोगों से बहुत प्रेम एवं सम्मान मिला। जाने कितने अद्भुत मित्र एवं समर्थक मिले, ऐसे कि एक बार मिला तक नहीं, किंतु कहने पर बहुत कुछ कर गये! उन्हें आभार कहने में भी संकोच होता है। 
मेरे कहने पर केवल साँस भर लेते सुधर्मा संस्कृत दैनिक पत्र हेतु लोगों ने अंशदान दिये। भले लघु हों, जाने कितने अभियानों में आप लोग पूर्ण समर्पण से लगे।
यहाँ रहते हुये पूर्णत: नि:शुल्क, पूर्णत: प्रचार मुक्त मघा पत्रिका की नींव पड़ी, भले धन एवं समय मेरा लगा, चल निकली तो आप लोगों के कारण, ऐसे मित्रों के कारण जो पीछे से बहुत कुछ सँभालते हैं - समानशीलव्यसनेषुसख्यम् । 
सनातन युवा न्यास स्थापित हुआ तो आप लोगों के कारण। जब भी माँगा, लोगों ने पूर्ण विश्वास के साथ आर्थिक योगदान भी किये। आप सबका आभारी हूँ कि ये दोनों आगे भी अपने लक्ष्य हेतु लगे रहेंगे। 
श्रीरस्तीति रोहित शुश्रुम पापो नृषद्वरो जन इन्द्र इच्चरतः सखा चरैवेति चरैवेति ...  


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एक अन्तिम बात जिसे आप मेरे कल्पनाशील मन की उपज मान उपेक्षित भी कर सकते हैं। इस बार के चुनाव परिणामों को लेकर जब सामान्य जन को इतनी उत्कण्ठा है कि उसने स्वयं ही आगे बढ़ प्रचार किया है, तो उसे कितनी होगी जिसके सिर इन समस्त अपेक्षाओं एवं उत्कण्ठाओं का भार है? सरकार के पक्ष में मुझे नहीं लगता कि जनता ऐसे कभी मुखर हुई थी। अपने ऊपर जो अपेक्षाओं का गम्भीर भार है, उसे मोदी जानते समझते नहीं होंगे, ऐसा नहीं है। प्रज्ञा प्रकरण में मोदी ने जो कहा, वह सम्भवत: उनके अवचेतन की अभिव्यक्ति भी हो सकती है कि लोगों का आसक्ति भाव किञ्चित घटे जिससे कि सम्भावित वैपरीत्य में व्यक्तियों द्वारा निराश प्रतिक्रियाओं की तीव्रता तनु हो। मोदी को ले कर कुछ लोग चरम भावुकता में हैं। आप के बंधु, बांधव, मित्र, सम्बंधियों में ऐसे हों तो चुनाव परिणाम के दिन उन पर दृष्टि रखें, विपरीत परिणाम आने पर उन्हें सांत्वना दें। इस देश ने बहुत कुछ देखा है, इतना भंगुर भी नहीं कि पाँच वर्षों का आघात न सह सके! लोग अब जाग कर उठ चुके हैं, अवांछित सरकार द्वारा किये गये अवांछित कर्मों पर लगन से लड़ेंगे।        
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अग्ने व्रतपते व्रतञ्चरिष्यामि तच्छकेयन्तन्मे राध्यताम् । 
इदमहमनृतात्सत्यनुपैमि ॥