Sunday, February 24, 2019

kashmir-chalo कश्मीर चलो

#कश्मीर‌_चलो 
शैव मत का केन्द्र रहे कश्मीर की ओर दोनों मान्य शङ्कराचार्यों (पुरी एवं शृंगेरी) के नेतृत्त्व में धर्मसंसद प्रयाण करे। शस्त्र तो ले जा नहीं सकते, शास्त्र के साथ जाये। सरकार उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करे। 
ऐतिहासिक भूल के सुधार का लक्ष्य ले कर जाये कि जो भी कश्मीरी मुसलमान सनातन धर्म में लौटना चाहते हैं, उनका स्वागत है। उनके पुरातन सारस्वत मूल को देखते हुये शुद्धि के पश्चात उनका यज्ञोपवीत संस्कार किया जायेगा तथा वे एक नयी जाति के रूप में हिंदू धर्म का अंग बन जायेंगे, यह प्रस्ताव रख दें।
सार्वजनिक घोषणा हो, प्रचार हो, किसी को बुलाने न जायें। जो आते हैं, उनको वहीं दीक्षित कर दिया जाय।
महाशिवरात्रि का पावन दिन निकट है, अवसर प्रत्येक दृष्टि से उपयुक्त है। आगे भी विकल्प खुला रहे।
#कश्मीर_का_इतिहास पढ़ते हुये।
#पण्डित‌_श्री‌_भट्ट की स्मृति में।

Wednesday, February 13, 2019

अपोलो, बंगाल एवं मुसलमान


सप्तर्षिवंशज, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, अवर्ण, सवर्ण, पञ्चम आदि अनादि पिछले दस वर्षों से मुसलमानों की सचाइयाँ उघाड़ने के कारण मुझसे पीड़ित होते रहे हैं। अनेक बाधित हुये, बाधित कर गये किन्‍तु उससे सचाई परिवर्तित नहीं हो जाती।
आज पुन: कह रहा हूँ:


आप बहुत बड़े संकट में घिर गये हैं। वह संकट इस्लाम है जिसके वाहक मुसलमान हैं। मुसलमान मानव नहीं होते, कैंसर की भाँति सभ्यता एवं संस्कृति के असाध्य शत्रु होते हैं ।

आप जहाँ भी, जिस स्तर पर भी हैं, जितनी भी शक्ति है; मुसलमानों के प्रभाव को काटते चलें। आरम्भ में लड़ने भिंड़ने की आवश्यकता ही नहीं, मस्तिष्क एवं बटुये के बुद्धिमत्तापूर्ण प्रयोग से एक एक हिन्‍दू चाहे तो इनकी रोकथाम में अपना सार्थक योगदान दे सकता है। सायास, चैतन्य हो कर काम करना पड़ेगा।
...
आज अपोलो चिकित्सालय के सबसे बड़े केन्‍द्र पर जाना पड़ा। मेरी आँखें फटी रह गईं। मुझे हर पल चेताने वाली श्रीमती जी भी कह पड़ीं, ये बंगाली अस्पताल है क्या? बाहर बंगाली चाहे जो बकबक करें, वास्तविकता यह है कि उनका बंगाल नष्ट हो चुका है। किञ्चित भी बड़ी समस्या होने पर स्वास्थ्य सेवाओं हेतु आमार सोनार बांगलाबासी यहाँ धँसे चले आ रहे हैं, यकृत प्रत्यारोपण से ले कर मस्तिष्क गाँठ तक, जिधर देखो, उधर ही बांगाली ... आमार सोनार कोलकाता में ढंग का एक चिकित्सालय भी नहीं, ऐसा प्रतीत होता है।
बंगाली को तमिल नहीं आती, तमिल को बंगाली नहीं, दोनों को अंग्रेजी नहीं आती। ऐसे में परस्पर संवाद की भाषा वही है, उस क्षेत्र की भाषा है जिसका 'हिंदुस्तान' कह कर बंगाली पहले उपहास करते थे, आज भी करते मिल जायेंगे - हिंदी।
जहाँ की भाषा से पेरियारियों ने चुन चुन कर संस्कृत के शब्द निकाल दिये, उस घोर हिंदीद्वेषी तमिल क्षेत्र में तमिल एवं बंगाली जन को हिंदी में दु:ख सुख से ले कर औषधियों के प्रयोग तक की बातें करते पा कर मुझ संकीर्णमना का वक्ष गर्व से ५६! अङ्गुल का हो गया।
हे हिंदीभाषियों ! इस देश को तुम्हारी भाषा हिंदी जोड़े हुये है। हिंदी में निष्णात बनो। हिंदी को शुद्ध लिखना एवं बोलना सीखो। हिंदी को समृद्ध करो, हिंदी को जन जन की भाषा बनाओ। काले अंग्रेज चाहे जो कर लें, तिरस्कृत गोबरपट्टी की भाषा हिंदी ही इस देश की परस्पर संवाद की भाषा रहेगी। तुम्हें गुजरातियों से शिक्षा लेनी चाहिये जो कि आधुनिक हिंदी का पहला गढ़ हुआ तथा जहाँ आज भी हिंदी का ज्ञान होना गर्व की बात है।
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अच्छाइयों के पश्चात आते हैं सङ्कट पर। सङ्कट यह है कि उन बंगालियों में मुसलमान अत्यधिक संख्या में थे। श्रीमती जी भी मेरी इस बात से सहमत हुईं कि संसाधनों पर ऐसे ही ये 'कब्जा' कर लेते हैं। सीमित संसाधनों की स्थिति हो तो यह स्थिति गुणवत्ता वाली मानव जनसंख्या हेतु बहुत दु:खदायी हो जाती है। जहाँ जायेंगे, वहीं बुरका ओढ़े चुड़ैलें तथा दाढ़ी रंगे, मूँछे छिले, बड़े का कुर्ता, छोटे का पायजामा पहने मियाँ पहले से ही स्थान छेकाये मिलेंगे। स्थिति इतनी गंदी कर चुके हैं कि आसन पर अपना मैला झोला, खून, थूक से सने कपड़े रख मियाँइनें जमी मिलेंगी। लोग खड़े रहें किंतु आसन से झोला हटाना नहीं। हिंदू तो वैसे ही बहुत शेखुलर प्राणी होता है, मियाँ मियाँइन को देखते ही उसके रोम रोम से सद्भावना एवं दीनता रिसने लगती हैं किंतु यदि कोई 'साम्प्रदायिक' हो कर, थेथर हो कहे भी कि ऐ प्रोडक्शन मशीन, तुम्हारा पिस्टन तो इधर उधर घूम रहा है, झोला तो नीचे रख दे कि कोई मानव बैठ जाय! तो काले बोरे में भरी माल की कजरारी आँखों से जलते हुये कोयले बरसने लगते हैं मानों कह रही हों - नामाकूल काफिर! बदजुबान, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा कहने की? जानता नहीं कि हम तुर्कन-मंगोलन-सैयदन सब हैं। इस दारुल हरब की हर वस्तु पर हमारा पहला अधिकार है!
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मुसलमान गाजर घास हैं, टिड्डी दल हैं, पसरते मरुस्थल हैं। तुर्रा ये कि पूरी ठसक से, अपनी समस्त उज्जडताओं के साथ अपना काम भी कराते हैं।
सबसे बड़ी बात 'आमार सोनार बांगला' के घनचक्कर के कारण इनमें कितने बाँग्लादेशी हैं, आप जान भी नहीं सकते ! कितने घोटाले हो रहे हैं, किसे पता?
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प्रवचन के अन्त में संक्षेप में जानें कि बंगाल का तो बांग बोका हो चुका है। सावधान रहते हुये सीख नहीं लिये तो आप का भी केरल-कश्मीर होने में अधिक समय शेष नहीं है। सस्य श्यामला को चट करने टिड्डियों का दल प्रजनन में पूरे समर्पण से लगा हुआ है तथा उसका पोषण हिंदू ही कर रहे हैं।
सँभलो, जागो हिंदुओं, जागो!

Monday, February 11, 2019

इन्‍द्र, मेरे लिये दूसरी पत्नी का प्रबन्ध करो !

#पद्मपुराण का विराट यज्ञ आयोजन अद्भुत है। खान पान की सज्जा वरुण करते बताये गये हैं : स्वयं च वरुणो रत्नं दक्षश्चान्नं स्वयं ददौ आगत्य वरुणो लोकात्पक्वं चान्नं स्वतोपचत् ... देवी सावित्री के आने में किञ्चित विलम्ब होने को स्त्रीसुलभ प्रकृति बताते हुये मनोरञ्जक वर्णन है - व्यग्रा सा कार्यकरणे स्त्रीस्वभावेन नागता ! ... सुसत्कृता च पत्नी सा सवित्री च वरांगना अध्वर्युणा समाहूता एहि देवि त्वरान्विता उत्थिताश्चाग्नयः सर्वे दीक्षाकाल उपागतः व्यग्रा सा कार्यकरणे स्त्रीस्वभावेन नागता इहवै न कृतं किंचिद्द्वारे वै मंडनं मया भित्त्यां वैचित्रकर्माणि स्वस्तिकं प्रांगणेन तु प्रक्षालनं च भांडानां न कृतं किमपि त्विह लक्ष्मीरद्यापि नायाता पत्नीनारायणस्य या अग्नेः पत्नी तथा स्वाहा धूम्रोर्णा तु यमस्य तु वारुणी वै तथा गौरी वायोर्वै सुप्रभा तथा ऋद्धिर्वैश्रवणी भार्या शम्भोर्गौरी जगत्प्रिया मेधा श्रद्धा विभूतिश्च अनसूया धृतिः क्षमा गंगा सरस्वती चैव नाद्या याताश्च कन्यकाः इंद्राणी चंद्रपत्नी तु रोहिणी शशिनः प्रियाः अरुंधती वसिष्ठस्य सप्तर्षीणां च याः स्त्रियः अनसूयात्रिपत्नी च तथान्याः प्रमदा इह वध्वो दुहितरश्चैव सख्यो भगिनिकास्तथा नाद्यागतास्तु ताः सर्वा अहं तावत्स्थिता चिरं नाहमेकाकिनी यास्ये यावन्नायांति ता स्त्रियः ब्रूहि गत्वा विरंचिं तु तिष्ठ तावन्मुहूर्तकम् सर्वाभिः सहिता चाहमागच्छामि त्वरान्विता सर्वैः परिवृतः शोभां देवैः सह महामते ... अध्वर्युओं ने पुकारा, ब्रह्मा जी मुण्डन करा कर आसन ग्रहण कर चुके हैं, आप भी चलें, दीक्षा का समय आ चुका है। सावित्री जी को शीघ्रता नहीं थी - द्वार की शोभा अभी मैंने की ही नहीं, भित्तियों पर विचित्र चित्रण भी नहीं किया, न प्राङ्गण में स्वस्तिक बनाया। भाण्ड (बर्तन) धोये ही नहीं गये अभी तो ! नारायण की पत्नी लक्ष्मी भी अभी तक नहीं आयी हैं, न अग्नि की पत्नी स्वाहा, न यम की पत्नी धूम्रोर्णा, न वरुण की गौरी आयी हैं, न वायु की सुप्रभा, कुबेर की ऋद्धि भी नहीं आई हैं अभी तक, न सारे जग की आराध्या एवं शम्भु की पत्नी गौरी ही आई हैं अभी तक ... ... सावित्री गिनाती गईं, अलानी नहीं आईं, फलानी नहीं आईं, बहुयें, सखियाँ, बहनें, बेटियाँ अभी तक आईं ही नहीं। मैं अकेली जाने कब से सबकी प्रतीक्षा में हूँ। मुझे वहाँ अकेली नहीं जाना। जा के कह दो ब्रह्मा जी से, कि किञ्चित प्रतीक्षा करें, सब आ जायें तो लिवा के आती हूँ झड़क के‍! (बड़ी शीघ्रता लगी है हुंह!) :) मुहूर्त निकला जा रहा था, उस में ब्रह्मा ने जब यह संदेश सुना तो पिनक गये ! ऐ इन्द्र ! मेरे लिये दूसरी पत्नी ले कर आओ - पत्नीं चान्यां मदर्थे वै शीघ्रं शक्र इहानय ! ____________________ घर में यज्ञ आयोजन हो तो प्रकारांतर से यह समझाया गया है कि पुरुष तो अपने बहेड़े करते रहेंगे, घरनियों को चौका पूर देना चाहिये, भित्तियों को सजा देना चाहिये, घर स्वच्छ कर देना चाहिये, ऐसा न हो कि यज्ञ हो रहा है तथा घर में जूठे वासन पड़े हैं। स्त्री सम्बंधियों, सखियों, पड़ोसनों आदि को जुटा लेना चाहिये। ... ... हाँ तो ब्रह्मा जी को दूसरी पत्नी मिलीं एक आभीरकन्या। नाम था - गायत्री। इंद्र जैसे पारखी को भी समस्त ब्रह्माण्ड में वैसी सुंदरी नहीं दिखी थी। परिचय पूछे तो बोली कि आभीरकन्या हूँ, दूध, दही, नवनीत, मट्ठा बेंचती हूँ। जो चाहिये, बताओ, मिलेगा। ... गोपकन्या त्वहं वीर विक्रीणामीह गोरसम् । नवनीतमिदं शुद्धं दधि चेदं विमंडकम् ॥ दध्ना चैवात्र तक्रेण रसेनापि परंतप । अर्थी येनासि तद्ब्रूहि प्रगृह्णीष्व यथेप्सितम् ॥ इंद्र ने बाँह पकड़ी तथा ब्रह्मा के समक्ष ला बिठाये। दोनों एक दूसरे को देख कामबाण से आहत हो गये। विष्णु जी के सुझाव पर ब्र्ह्मा जी ने गायत्री से गंधर्व विवाह कर लिया। ... गायत्री का रूप वर्णन नीचे दिया हुआ है : सरागो यदि वा स्यात्तु सफलस्त्वेष मे श्रमः नीलाभ्र कनकांभोज विद्रुमाभां ददर्श तां त्विषं संबिभ्रतीमंगैः केशगंडे क्षणाधरैः मन्मथाशोकवृक्षस्य प्रोद्भिन्नां कलिकामिव प्रदग्धहृच्छयेनैव नेत्रवह्निशिखोत्करैः धात्रा कथं हि सा सृष्टा प्रतिरूपमपश्यता कल्पिता चेत्स्वयं बुध्या नैपुण्यस्य गतिः परा उत्तुंगाग्राविमौ सृष्टौ यन्मे संपश्यतः सुखं पयोधरौ नातिचित्रं कस्य संजायते हृदि रागोपहतदेहोयमधरो यद्यपि स्फुटम् तथापि सेवमानस्य निर्वाणं संप्रयच्छति वहद्भिरपि कौटिल्यमलकैः सुखमर्प्यते दोषोपि गुणवद्भाति भूरिसौंदर्यमाश्रितः नेत्रयोर्भूषितावंता वाकर्णाभ्याशमागतौ कारणाद्भावचैतन्यं प्रवदंति हि तद्विदः कर्णयोर्भूषणे नेत्रे नेत्रयोः श्रवणाविमौ कुंडलांजनयोरत्र नावकाशोस्ति कश्चन न तद्युक्तं कटाक्षाणां यद्द्विधाकरणं हृदि तवसंबंधिनोयेऽत्र कथं ते दुःखभागिनः सर्वसुंदरतामेति विकारः प्राकृतैर्गुणैः वृद्धे क्षणशतानां तु दृष्टमेषा मया धनम् धात्रा कौशल्यसीमेयं रूपोत्पत्तौ सुदर्शिता करोत्येषा मनो नॄणां सस्नेहं कृतिविभ्रमैः एवं विमृशतस्तस्य तद्रूपापहृतत्विषः निरंतरोद्गतैश्छन्नमभवत्पुलकैर्वपुः तां वीक्ष्य नवहेमाभां पद्मपत्रायतेक्षणाम् देवानामथ यक्षाणां गंधर्वोरगरक्षसाम् नाना दृष्टा मया नार्यो नेदृशी रूपसंपदा ... गोपकन्यामसौ दृष्ट्वा गौरवर्णां महाद्युतिम् कमलामेव तां मेने पुंडरीकनिभेक्षणाम् तप्तकांचनसद्भित्ति सदृशा पीनवक्षसम् मत्तेभहस्तवृत्तोरुं रक्तोत्तुंग नखत्विषं तं दृष्ट्वाऽमन्यतात्मानं सापि मन्मनथचरम् तत्प्राप्तिहेतु क धिया गतचित्तेव लक्ष्यते प्रभुत्वमात्मनो दाने गोपकन्याप्यमन्यत यद्येष मां सुरूपत्वादिच्छत्यादातुमाग्रहात् नास्ति सीमंतिनी काचिन्मत्तो धन्यतरा भुवि अनेनाहं समानीता यच्चक्षुर्गोचरं गता अस्य त्यागे भवेन्मृत्युरत्यागे जीवितं सुखम् भवेयमपमानाच्च धिग्रूपा दुःखदायिनी दृश्यते चक्षुषानेन यापि योषित्प्रसादतः सापि धन्या न संदेहः किं पुनर्यां परिष्वजेत् जगद्रूपमशेषं हि पृथक्संचारमाश्रितम् लावण्यं तदिहैकस्थं दर्शितं विश्वयोनिना अस्योपमा स्मरः साध्वी मन्मथस्य त्विषोपमा ... कुचयोर्मणिशोभायै शुद्धाम्बुज समद्युतिः मुखमस्य प्रपश्यंत्या मनो मे ध्यानमागतम् अस्यांगस्पर्शसंयोगान्न चेत्त्वं बहु मन्यसे स्पृशन्नटसि तर्हि न त्वं शरीरं वितथं परम् अथवास्य न दोषोस्ति यदृच्छाचारको ह्यसि मुषितः स्मर नूनं त्वं संरक्ष स्वां प्रियां रतिम् त्वत्तोपि दृश्यते येन रूपेणायं स्मराधिकः ममानेन मनोरत्न सर्वस्वं च हृतं दृढम् शोभा या दृश्यते वक्त्रे सा कुतः शशलक्ष्मणि नोपमा सकलं कस्य निष्कलंकेन शस्यते समानभावतां याति पंकजं नास्य नेत्रयोः कोपमा जलशंखेन प्राप्ता श्रवणशंङ्खयोः विद्रुमोप्यधरस्यास्य लभते नोपमां ध्रुवम् आत्मस्थममृतं ह्येष संस्रवंश्चेष्टते ध्रुवम् यदि किंचिच्छुभं कर्म जन्मांतरशतैः कृतम् तत्प्रसादात्पुनर्भर्ता भवत्वेष ममेप्सितः

Saturday, February 9, 2019

वसन्‍त पञ्चमी : पावका न: सरस्वती वाजेभि: वाजिनीवती

कर, कार्य, कर्म आदि के मूल में कर, आप के अपने हाथ हैं। कर्म और श्रम की महत्ता प्रात:काल उठते ही स्वयं के हाथ देख उनमें लक्ष्मी और सरस्वती के साथ गोविन्द के दर्शन के निर्देश द्वारा बतायी गयी। 
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती। करमूले तु गोविन्द: प्रभाते करदर्शनम्॥ 
दर्शन का क्रम जो भी हो, गति की दिशा स्पष्ट है। कर्म के मूल में गोविन्द रहें, सुकर्म स्वत: सुनिश्चित। 'गो' का एक अर्थ इन्द्रिय भी है। पाँच कर्मेन्द्रियाँ और पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ मिल कर कर्मी 'इन्द्र' को पराक्रमी बनाती हैं। आगे लक्ष्मी की प्राप्ति से पहले मध्य की सरस्वती विद्या आवश्यक हैं कि उत्कृष्टता, परिमार्जन और शुचिता बने रहें। इन सबके साथ से हर कर्म यज्ञ हो जाता है।
पावका न: सरस्वती वाजेभि: वाजिनीवती यज्ञम् वष्टु धियावसुः
चोदयित्री सूनृतानां चेतन्ती सुमतीनाम् यज्ञम् दधे सरस्वती
महो अर्ण: सरस्वती प्र चेतयति केतुना धियो विश्वा वि राजति। 
- ऋग्वेद
(देवी सरस्वती जो पवित्र करने वाली हैं, पोषण करने वाली हैं और जो बुद्धि से किए गए कर्म को धन प्रदान करती हैं। हमारे यज्ञ को सफल बनाएँ। जो सच बोलने की प्रेरणा देती हैं और अच्छे लोगों को सुमति प्रदान करने वाली हैं। जो नदी के जल के रूप में प्रवाहित होकर हमें जल प्रदान करती हैं और अच्छे कर्म करने वालों की बुद्धि को प्रखर बनाती हैं। वह देवी सरस्वती हमारे यज्ञ को सफल बनायें।)
बसंत पञ्चमी पर्व की मंगल कामनायें। सरस विद्या आप के पराक्रम और लब्धि में संतुलन सहायिका बनी रहे।

Null Set




अध्यापक - Null set का उदाहरण दो। 
छात्र - ऐसे #मुसलमानों का सेट जो बिना कोई जघन्य अपराध किये कब्र तक पहुँच गये हों!

व्यावहारिक बात : बच्चों को 'अपनी' कहानियाँ' सुनायें


हमारे नाना केवल पाँचवी पास थे, वैद्यकी में बड़े बड़े वैद्यों के कान काटने वाले। वनस्पतियों का जो अभिज्ञान उन्हें था, मैंने किसी अन्य में आज तक नहीं पाया। वे कहानियाँ सुनाते थे। लोक कथायें, पुराणों से भी। किसी भी देश की कहानियों में पुरनिये बसते हैं, उस देश की सञ्जीवनी होती है, भावनायें भी - प्रेम, घृणा, शोक, उत्साह आदि सभी। आप ध्यान देंगे तो पायेंगे कि कहानियों पर पले बढ़े इस देश ने अपनी घृणा का उपयोग कवच के रूप में भी किया। मुसलमानों के साथ व्यवहार प्रमाण है।
मैंने जो राजा, नरमांस, शाप वाली कथा बताई, वह पुराणों में, महाभारत में विविध रूपों में आई है किंतु उनसे बचपन में सुना रूप जैसे मन पर ट्ङ्कित रह गया।
पिताजी बहुश्रुत थे किंतु सार्वजनिक अभिव्यक्ति से बचते थे। उन्होंने बचपन में जो कहानियाँ सुनाईं, उनमें से कुछ ये ध्यान में आ रही हैं:
1. दाशराज्ञ युद्ध, विश्वामित्र की नदी स्तुति एवं श्यामकर्ण अश्व लेने हेतु पश्चिम प्रयाण
2. भीष्म की कथायें
3. भारत युद्ध पूर्व सञ्जय का धृतराष्ट्र को प्रबोधन, विदुरनीति एवं सनत्सुजातीय दर्शन
4. गीता उपदेश से पूर्व भगवान की मन:स्थिति
5. गोकर्ण एवं धुन्धकारी
6. मदालसा
7. नचिकेता, आरुणि, उपमन्यु आदि की कथायें
8. सगरपुत्र एवं भगीरथ
8. अरण्यकाण्ड में वर्णित श्रीराम
9. याज्ञवल्क्य, वाजसनेय एवं जनमेजय
10. अगस्त्य का दक्षिण अभियान
11. सिकंदर एवं पुरुषोत्तम
12. कुमारिल, बौद्ध एवं शंकर
13. सिंध के राजा दाहर
14. सोमनाथ
15. परमर्दिदेव
16. महाराणा एवं अकबर
17. दुर्गावती
भारत का मानचित्र बनाना पहली बार सीखा तो कौतुक में ही उनसे झड़प सी हो गयी। उस समय ही मेरे ऊपर सिन्ध, दाहर एवं उसकी पुत्रियों की कथा उद्घाटित हुई थी। बच्चों का मन कोरा पट होता है। उस पर माता पिता गुरुजन आदि जो 'लिखते' हैं, वह जन्म भर बना रहता है। कुछ बच्चों की मानसिक गढ़न ऐसी होती है कि वे वहीं से आगे बढ़ लेते हैं। बढ़ें या न बढें, अंतर्मन पर छाप अक्षुण्ण रहती है। आजकल के बच्चे उथले मानवतावाद, ईश्वर अल्ला तेरो नाम, सब मजहब धर्म समान एवं हैरी पॉटर जैसी कथाओं पर बढ़ते हैं। हैरी पॉटर के अतिरिक्त आत्मघाती गान्‍धीवाद के विषय तो हमारे समय में भी पढ़ाये जाते थे किंतु हमें उनकी वास्तविकता से अभिभावकों ने अवगत रखा। आज कल के बच्चों के माताओं एवं पिताओं को ज्ञात ही नहीं तो बतायेंगे क्या, सुनायेंगे क्या? मोबाइल आने के पश्चात तो रिक्त समय में पढ़ने का अभ्यास ही नहीं रहा ! यूट्यूब पर प्रयास चल रहे हैं किंतु जिस प्रकार से चल रहे हैं, सन्तोषजनक तो नहीं ही हैं।
आप की जो अपनी पुरातन कहानियाँ हैं, वे कवच हैं, वे वह चाक हैं जिस पर नई पीढ़ी का मानस अब भी गढ़ा जा सकता है। ऐसे जाने कितनी प्रभावती स्त्रियाँ एवं प्रभापुरुष हैं जिनके बारे में बात ही नहीं होती - सुहेलदेव, झलकारी बाई, लोरिक, तब जब कि लोरिकाइन तो अनेक वर्षों से ग्रामगान रहा है। कहानियों को नये कलेवर देने की आवश्यकता है, जो आधुनिक काल के बच्चों हेतु palatable हों, प्रस्तुतिकरण में आधुनिक हो। ऐसा नहीं है कि प्रयास नहीं हो रहे किन्‍तु वे विपणन की धनदोहनी मानसिकता से ग्रस्त होने के कारण भले के स्थान पर अनहित ही अधिक कर रहे हैं। मुझे तो कभी कभी इस पर आश्चर्य होता है कि इस देश की उस मेधा को क्या हो गया है जिसने लखपदिया महाभारत एवं चार लाख श्लोकों वाले पुराण रचे, जिसने पञ्चतंत्र, सहस्ररजनीचरित्रं, कथासरित्सागर जैसी रचनायें रचीं? इनमें से किसी के भी रचनाकार ने येन केन प्रकारेण धन की कमाई हेतु लिखा हो, ऐसा नहीं है।

तमिलनाडु में पसरता जिहाद एवं वी रामलिंगम की हत्या

वीर रामलिंगम की हत्या का पूरा घटनाक्रम यह है। पढ़ें कि किस प्रकार उस वीर को घेर कर योजनाबद्ध ढंग से मारा गया। मुसलमान जिहादी हत्यारों का प्रोत्साहन करने न्यायालय परिसर में भारी संख्या में पहुँचे जिनमें हलालाप्रिय औरतें भी थीं।
प्रत्येक मुसलमान राक्षस है, कोई व्यक्त है, कोई नहीं, केवल इतना ही अन्तर है। जब उनके हरावल जिहादी आगे बढ़ते हैं तो शेष चुप रह कर या उत्साह के साथ समर्थन करते हैं।
देश में चारो ओर चल रहे बर्बर राक्षसी रेप जिहाद के विरोध में आज तक मैंने किसी भी पञ्चर वाले से ले कर शायरी वाले मुसलमान तक को विरोध में मुखर होते नहीं पाया।
मुसलमान का मौन भी उसका प्रहार है तथा आप का मौन आत्महत्या।
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मूल लिंक - https://www.facebook.com/Kajalshingala82/posts/2194669943912353
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Latest Updates and Details on #Ramalingam case (9 February)
Large Numbers of Local Muslims (200 Bearded Men, 70 Hijabi Women) clapped and cheered for the Five Smiling Jihadis when they were produced in Thanjavur court yesterday for murdering our Hindu hero Ramalingam
Muslim Jamaath will bear all the legal and family expenses of arrested Jihadis with donations pouring in from local Muslims within Tamil Nadu and from Muslim NRIs (working in Gulf countries). A Viral Fundraising Campaign on the Letterhead of the local Muslim Jamaath is being circulated to all Muslims on social media for this purpose.
*How our Hindu braveheart Ramalingam was Murdered by Muslims on 6th February, 2019 in Tamil Nadu*
Hindu Hero Ramalingam was brutally murdered by Jihadis in front of his 17-year old Son. Both his hands were chopped off with machetes by Muslims.
48-year-old Ramalingam from Thoondil Vinayagampettai at Tirubhuvanam was a catering contractor and had been engaged in the business of renting out utensils and shamiana tents for weddings. His establishment was located at Tirubhuvanam.
Before he was Murdered by Muslims, our valiant hero Ramalingam had singlehandedly challenged and foiled the Islamic Jihadis who were trying to convert Dalit Hindus in Thirubhuvanam, near the temple town of Kumbakonam, in Thanjavur district of Tamil Nadu.
According to police sources, on Tuesday morning, Ramalingam went to Bhagyanathan Thoppu, a Hindu area, to mobilise some workers for a function for which his catering firm had undertaken a contract.
Ramalingam, who was coincidentally present at that locality, noticed a group of Jihadi Muslim men, including one Rasudeen, belonging to the radical Islamic organisation Popular Front of India (PFI) , who were proselytising aggressively to the local Hindus in that locality.
Ramalingam entered into an argument with them. A video clip, that has gone viral on social media, shows Ramalingam resisting the proselytising efforts of a Muslim man at Bhagyanathan Thoppu.
In the video, Ramalingam is pointing out how it is impossible for Hindu community members to buy any land in Muslim dominated areas. He also pointed out how Hindus were willing to participate in Muslim events but faced lack of reciprocity. He also requested the Muslim activists to refrain from aggressive preaching in Hindu locality.
Ramalingam was seen politely debating with the Muslims and trying to tell them that they were causing religious chaos in an otherwise harmonious area.
Ramalingam, in the video, tells the Muslims that he can get them houses for rent in his locality, whereas can they (Muslims) get him a house for rent in their area?
At one point, he takes out the cap of a Muslim and wears it, saying he has no problem with it. Ramalingam then goes on to smear holy ash on a Muslim man's forehead, who immediately erases it.
Ramalingam also tells the Muslims that he doesn't mind eating the food they give him after their worship. "Will you guys eat the food we give after our prayers?"
In the video, Ramalingam is seen reasoning with this group of Islamists, telling them not to indulge in conversions of Hindus. “Hindus are not anti-anybody. We worship our Hindu Gods, you worship your Allah. Why are all of you Muslims keen on wiping out our Hinduism? You are Terrorists.”
Soon afterwards, the Muslims dispersed and plotted their revenge.
These Muslim murderers proved his last words to be right. They surrounded and butchered him ISIS-style. This unarmed, outspoken Hindu was slaughtered for defending Hindus against Islamic conversions.
On Tuesday (Feb 7) night, after finishing work, Ramalingam was going home from Chettimandapam, in his mini-load van, accompanied by his 17-year-old son.
When his vehicle was passing through Muslim Street - a locality dominated by Muslim community in Tirubhuvanam, it was blocked by a car.
After blocking the road with their car, four Muslim Jihadis forcibly stopped Ramalingam’s vehicle & took out the keys.
The Muslim murderers had kept red hot chilli powder mixed with liquor ready and they poured it on Ramalingam’s face.
As Ramalingam collapsed in agony, they chopped off his one hand & proceeded to stab Ramalingam’s son.
In his last move, Ramalingam saved his son’s life by raising his other hand to block the machete blows and getting his other hand chopped off.
As people started coming out after hearing the screams of the victims, the 4 Islamic murderers escaped in their car.
This has been narrated by deceased Ramalingam’s son.
Ramalingam, who was grievously injured and bleeding profusely, was rushed to the Kumbakonam government hospital. He was reportedly referred to Thanjavur Medical College Hospital where he was declared brought dead.
Police officials confirmed that five Muslims had been arrested in connection with the case: Mohammad Azaruddin, Mohamma Riaz, Nizam Ali, Sarbuddin and Mohammad Riaz. The Superintendent of Police of Thanjavur, Maheshwaran, told TNM that Nizam was seen in the video and he was a member of the Popular Front of India (PFI).
Large Numbers of Muslims clapped and cheered for the Five Smiling Jihadis when they were produced in Thanjavur court today for murdering our Hindu hero Ramalingam
Muslim Jamaath will bear all the legal and family expenses of arrested Jihadis with donations pouring in from local Muslims within Tamil Nadu and from Muslim NRIs (working in Gulf countries)
Has any National media gave coverage for this? #JusticeForRamalingam

छांदोग्य उपनिषद - 1

सामवेदीय #छांदोग्य उपनिषद मनुष्य की ११६ वर्ष की आयु की सङ्कल्पना करता है। 
गायत्री छंद के २४ अक्षरों से आरम्भ के २४ वर्ष, त्रिष्टुभ के ४४ से अगले ४४ वर्ष तथा जगती के ४८ अक्षरों से अंतिम ४८ वर्ष। ऐतरेय महिदास का उदाहरण भी दिया गया है। 
ऐतरेय इतरा के पुत्र थे तथा उन्होंने ऋग्वेद के ऐतरेय ब्राह्मण का दर्शन किया था। 
पूरा अंश इस प्रकार है।

#सत्यकाम #जाबाल के गुरु हारिद्रुमत गौतम ने उन्हें चार सौ कृश एवं बलहीन गायें दे कर कहा कि ये गायें ले कर प्रस्थान करो, इन्हें तब तक चराना जब एक सहस्र न हो जायें। सत्यकाम ने कहा कि ऐसा ही होगा। 
गायें एक हजार हो गईं तो ऋषभ (साँड़) ने कहा कि संख्या पूर्ण हुई, अब आचार्य के पास हमें ले चलो। क्या मैं तुम्हें ब्रह्म का एक पाद बताऊँ? सत्यकाम ने उत्तर दिया कि भगवन् ! अवश्य बतायें। ऋषभ ने उपदेश दे कर कहा कि अगला पाद अग्निदेव बतायेंगे। 
चलते चलते साँझ हो गयी तो अग्नि प्रज्ज्वलित कर सत्यकाम ने समिधायें अर्पित कीं तथा समक्ष पूर्वाभिमुख हो कर बैठ गये। अग्निदेव ने भी वही प्रश्न किया, सत्यकाम ने वही उत्तर दे कर दूसरा भाग प्राप्त किया। तब अग्नि ने कहा कि ब्रह्म का तीसरा पाद हंस बतायेगा।
एक साँझ और बीती। गायों के साथ अग्निदेव की साक्षी में जाबाल ने ब्रह्म का तीसरा पाद हंस से जाना। हंस ने कहा कि चौथा पाद मद्गु जलपक्षी बतायेगा। एक साँझ और हुई तथा अग्नि की साक्षी में जाबाल ने मद्गु से ब्रह्म का चौथा एवं अंतिम पाद पाया।
सत्यकाम आचार्य के पास पहुँचे तो आचार्य ने कहा कि तुम्हारा मस्तक ब्रह्मवेत्ता की भाँति भासित हो रहा है। सत्यकाम ने उत्तर दिया कि मुझे मनुष्यों से भिन्न (चेतन तत्त्वों) ने उपदेश दिया है, अब आप उपदेश करें। ऋषि के उपदेश पश्चात - न किञ्चन वीयायेति वीयायेति ! किञ्चित भी जानना शेष न रहा।
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उपदेश क्या थे? जानने हेतु उपनिषद पढ़ें।
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केवल उपदेश शुष्क होता। साधारण सी प्रतीत होने वाली कथा ने इसमें रोचकता एवं अर्थवत्ता भर दी है। ऋषभ ने दिक्काल प्रकाश का उपदेश दिया, अग्नि ने पृथ्वी, समुद्र, अंतरिक्ष एवं द्युलोक को समेटे अनंत का उपदेश किया।
हंस ने ज्योतिस्वरूप अग्नि, सूर्य, चंद्र एवं विद्युत का उपदेश किया तथा जल पक्षी ने प्राण, श्रोत्र, चक्षु एवं मन का।
देखें तो चारो बाह्य कारक हैं जो सहजबोध, प्रेक्षण एवं मनन से प्राप्त ज्ञान को दर्शाते हैं। सत्यकाम ने स्वयं ही लग कर प्राप्त किया। आचार्य ने दीक्षा दे दी किन्‍तु आश्रम में नहीं रखा। माता के नाम को ही गोत्र बताने वाले को दीक्षित कर देना आचार्य द्वारा साहसी कृत्य था किन्‍तु जिसे दीक्षित किया था, उसे अपनी पात्रता को विशेष रूप से सिद्ध भी करना था अत: उन्हें वन को पठा दिया। विशेष सिद्धि का मार्ग भी विशेष होना चाहिये कि नहीं? राम को भी तो १४ वर्ष वन में व्यतीत करने पड़े थे! इतना सब होते हुये भी समाहार हेतु मनुष्य की उस मेधा की आवश्यकता रहती है जो ऋषि हो चुकी है।
परम्परा भी ऋषि सदृश ही होती है, जाने कितने मंत्र भीतर संग्रहित किये रहती है, उद्घाटन हेतु कोई सत्यशोधक सत्यकाम जाबाल आवश्यक होता है। इस कारण ही जो है, उसे बचाये रखने की आवश्यकता होती है। अवतारों पर विचार करेंगे तो पायेंगे कि वे सहसा ही नहीं हो गये, उनके आगमन की भूमिका में जाने कितना कुछ अर्पित हुआ, मौन साधना के साथ, बिना किसी आसक्ति के, समर्पण भाव के साथ।
शबरी, शरभङ्ग, अगस्त्य, सुतीक्ष्ण आदि न होते तो राम राम न हो पाते! कथाओं में सहज सत्य गूढ़ बना कर सँजो दिये जाते हैं क्यों कि मानव मन बहुधा सहज को स्वीकार ही नहीं पाता !

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आचार्य हो जाने पर सत्यकाम ने अपने एक शिष्य उपकोसल कामलायन के साथ वही किया जो उनके साथ गुरु गौतम ने किया था। बारह वर्ष तक उपकोसल अग्निचर्या करते रहे किंतु अन्य सबका समावर्तन कर आचार्य सत्यकाम ने उनका समावर्तन नहीं किया तो नहीं किया। पत्नी ने भी अनुरोध किया किंतु सत्यकाम बिना कुछ कहे ही प्रवास पर चले गये।
उपकोशल ने अनशन ठान ली तो अग्नियों ने मिल कर उन्हें उपदेश किया। गार्हपत्य, दक्षिणाग्नि, आहवनीय ने मिल कर उन्हें ब्रह्मविद्या का उपदेश दिया। तब तक आचार्य सत्यकाम लौट आये। आचार्य ने उनसे वही बात दुहराई जो कभी उनके आचार्य ने कही थी - तुम्हारा मुख ब्रह्मवेत्ता की भाँति भासित है किंतु तुम्हें इन अग्नियों ने केवल लोक का ज्ञान दिया है। मैं तुम्हें वह ज्ञान देता हूँ जिससे पापकर्म लिप्त नहीं होते ...
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उपदेश आगे तक चला। कथा एक प्रयोगधर्मी परम्परा की ओर सङ्केत करती है जिसमें सुपात्र स्वर्ण का चयन कर उसे अग्नि रूपी नवोन्मेषी चिंतनपद्धति में ठेल दिया जाता था।
आश्चर्य नहीं कि 'गुरु गुड़ चेला चीनी' के अनेक उदाहरण मिलते हैं।

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पाञ्चाल राजा अग्निविद्या के ज्ञाता थे। पिता पुत्र आरुणि एवं श्वेतकेतु ने उनसे इस विद्या को प्राप्त किया था।
केकय देश के राजा वैश्वानर विद्या के ज्ञाता थे जिनसे आरुणि, औपमन्वय, सत्ययज्ञ, भाल्लवि, इंद्रद्युम्न, शार्कराक्ष्य एवं बुडिल ने वह विद्या प्राप्त की थी।
महाशाला एवं महाश्रोत्रिय शब्द प्रयोगों से विशिष्ट गृहस्थ ज्ञानियों के होने के प्रमाण भी मिलते हैं।
यह सब तब ही हो सकता है जब शान्‍ति हो, भौतिक समृद्धि हो तथा जीवन में रिक्त समय हो। सुदूर पश्चिम से पूरब में मिथिला तक राजन्य वर्ग का ऐसा होना उत्पादन की प्रचुरता एवं एक बहुत ही संतुलित व्यवस्था का परोक्ष प्रमाण है। वस्तुत: उपनिषदों में पग पग पर वह भौतिक समृद्धि झाँकती दिख जाती है जिसके बिना यह सब सम्भव नहीं था।
विद्याओं की झाँकी देखें।