सप्तर्षिवंशज, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, अवर्ण, सवर्ण, पञ्चम आदि अनादि पिछले दस वर्षों से मुसलमानों की सचाइयाँ उघाड़ने के कारण मुझसे पीड़ित होते रहे हैं। अनेक बाधित हुये, बाधित कर गये किन्तु उससे सचाई परिवर्तित नहीं हो जाती।
आज पुन: कह रहा हूँ:
आप बहुत बड़े संकट में घिर गये हैं। वह संकट इस्लाम है जिसके वाहक मुसलमान हैं। मुसलमान मानव नहीं होते, कैंसर की भाँति सभ्यता एवं संस्कृति के असाध्य शत्रु होते हैं ।
आप जहाँ भी, जिस स्तर पर भी हैं, जितनी भी शक्ति है; मुसलमानों के प्रभाव को काटते चलें। आरम्भ में लड़ने भिंड़ने की आवश्यकता ही नहीं, मस्तिष्क एवं बटुये के बुद्धिमत्तापूर्ण प्रयोग से एक एक हिन्दू चाहे तो इनकी रोकथाम में अपना सार्थक योगदान दे सकता है। सायास, चैतन्य हो कर काम करना पड़ेगा।
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आज अपोलो चिकित्सालय के सबसे बड़े केन्द्र पर जाना पड़ा। मेरी आँखें फटी रह गईं। मुझे हर पल चेताने वाली श्रीमती जी भी कह पड़ीं, ये बंगाली अस्पताल है क्या? बाहर बंगाली चाहे जो बकबक करें, वास्तविकता यह है कि उनका बंगाल नष्ट हो चुका है। किञ्चित भी बड़ी समस्या होने पर स्वास्थ्य सेवाओं हेतु आमार सोनार बांगलाबासी यहाँ धँसे चले आ रहे हैं, यकृत प्रत्यारोपण से ले कर मस्तिष्क गाँठ तक, जिधर देखो, उधर ही बांगाली ... आमार सोनार कोलकाता में ढंग का एक चिकित्सालय भी नहीं, ऐसा प्रतीत होता है।
बंगाली को तमिल नहीं आती, तमिल को बंगाली नहीं, दोनों को अंग्रेजी नहीं आती। ऐसे में परस्पर संवाद की भाषा वही है, उस क्षेत्र की भाषा है जिसका 'हिंदुस्तान' कह कर बंगाली पहले उपहास करते थे, आज भी करते मिल जायेंगे - हिंदी।
जहाँ की भाषा से पेरियारियों ने चुन चुन कर संस्कृत के शब्द निकाल दिये, उस घोर हिंदीद्वेषी तमिल क्षेत्र में तमिल एवं बंगाली जन को हिंदी में दु:ख सुख से ले कर औषधियों के प्रयोग तक की बातें करते पा कर मुझ संकीर्णमना का वक्ष गर्व से ५६! अङ्गुल का हो गया।
हे हिंदीभाषियों ! इस देश को तुम्हारी भाषा हिंदी जोड़े हुये है। हिंदी में निष्णात बनो। हिंदी को शुद्ध लिखना एवं बोलना सीखो। हिंदी को समृद्ध करो, हिंदी को जन जन की भाषा बनाओ। काले अंग्रेज चाहे जो कर लें, तिरस्कृत गोबरपट्टी की भाषा हिंदी ही इस देश की परस्पर संवाद की भाषा रहेगी। तुम्हें गुजरातियों से शिक्षा लेनी चाहिये जो कि आधुनिक हिंदी का पहला गढ़ हुआ तथा जहाँ आज भी हिंदी का ज्ञान होना गर्व की बात है।
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अच्छाइयों के पश्चात आते हैं सङ्कट पर। सङ्कट यह है कि उन बंगालियों में मुसलमान अत्यधिक संख्या में थे। श्रीमती जी भी मेरी इस बात से सहमत हुईं कि संसाधनों पर ऐसे ही ये 'कब्जा' कर लेते हैं। सीमित संसाधनों की स्थिति हो तो यह स्थिति गुणवत्ता वाली मानव जनसंख्या हेतु बहुत दु:खदायी हो जाती है। जहाँ जायेंगे, वहीं बुरका ओढ़े चुड़ैलें तथा दाढ़ी रंगे, मूँछे छिले, बड़े का कुर्ता, छोटे का पायजामा पहने मियाँ पहले से ही स्थान छेकाये मिलेंगे। स्थिति इतनी गंदी कर चुके हैं कि आसन पर अपना मैला झोला, खून, थूक से सने कपड़े रख मियाँइनें जमी मिलेंगी। लोग खड़े रहें किंतु आसन से झोला हटाना नहीं। हिंदू तो वैसे ही बहुत शेखुलर प्राणी होता है, मियाँ मियाँइन को देखते ही उसके रोम रोम से सद्भावना एवं दीनता रिसने लगती हैं किंतु यदि कोई 'साम्प्रदायिक' हो कर, थेथर हो कहे भी कि ऐ प्रोडक्शन मशीन, तुम्हारा पिस्टन तो इधर उधर घूम रहा है, झोला तो नीचे रख दे कि कोई मानव बैठ जाय! तो काले बोरे में भरी माल की कजरारी आँखों से जलते हुये कोयले बरसने लगते हैं मानों कह रही हों - नामाकूल काफिर! बदजुबान, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा कहने की? जानता नहीं कि हम तुर्कन-मंगोलन-सैयदन सब हैं। इस दारुल हरब की हर वस्तु पर हमारा पहला अधिकार है!
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मुसलमान गाजर घास हैं, टिड्डी दल हैं, पसरते मरुस्थल हैं। तुर्रा ये कि पूरी ठसक से, अपनी समस्त उज्जडताओं के साथ अपना काम भी कराते हैं।
सबसे बड़ी बात 'आमार सोनार बांगला' के घनचक्कर के कारण इनमें कितने बाँग्लादेशी हैं, आप जान भी नहीं सकते ! कितने घोटाले हो रहे हैं, किसे पता?
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प्रवचन के अन्त में संक्षेप में जानें कि बंगाल का तो बांग बोका हो चुका है। सावधान रहते हुये सीख नहीं लिये तो आप का भी केरल-कश्मीर होने में अधिक समय शेष नहीं है। सस्य श्यामला को चट करने टिड्डियों का दल प्रजनन में पूरे समर्पण से लगा हुआ है तथा उसका पोषण हिंदू ही कर रहे हैं।
सँभलो, जागो हिंदुओं, जागो!
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