इनके अनुसार ही दुर्घटना की स्थिति में लोगों को वहाँ से दूर ले जाने की प्राथमिकता एवं उपाय युक्तियाँ निर्धारित की जाती हैं। कर्मचारी गण एवं निकटस्थ लोग सावधान रहें तथा सतर्क रहें, इस हेतु छ्द्म दुर्घटना का नाट्य रूपांतरण कर बचाव के सारे उपाय एवं युक्तियाँ इस प्रकार से लगाई जाती हैं मानों वास्तव में दुर्घटना हुई हो। ऐसे नाट्य रूपांतरणों की एक मानक प्रक्रिया एवं अनिवार्य आवृत्ति पारिभाषित होती है तथा दुर्घटना की स्थिति में प्रत्येक कर्मचारी को पहले से ही यह ज्ञात रहता है कि उसकी क्या भूमिका होगा, वह किस बचाव समूह का अंग होगा, आदि इत्यादि। समेकित रूप से इसे आपदा प्रबंधन योजना disaster management plan कहा जाता है।
गत दिनों एक सज्जन से बात हो रही थी। उन्होंने सुरक्षा से सम्बंधित एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात कही - भारत में समस्त मस्जिदों, दरगाहों एवं चर्च गिरजाघरों का मानचित्रीकरण होना चाहिये, देशांतर एवं अक्षांश के साथ।
मेरे मन में आया कि यदि इसके पश्चात उनकी मारक क्षमताओं के अनुसार मानचित्र पर दुर्घटना प्रभाव क्षेत्र अंकित किये जायें तथा सबसे अधिक घातक प्रभाव लाल रंग से दर्शाया जाय तो पूरा भारत ही 'रक्तरञ्जित' दिखेगा। सहसा ही मुझे मुसलमानों द्वारा विभाजन पूर्व सीधी कार्रवाई दिवस Direct Action Day का स्मरण हो आया तथा यह भी कि यदि आज ऐसा हो तो क्या हमारे पास कोई बचाव योजना है? कोई मानक प्रक्रिया? छ्द्म दुर्घटना आयोजन कर के बचाव उपायों की जाँच करने की कोई आवृत्ति? जापान भूकम्पों हेतु ऐसा करता है।
क्या समस्त सभ्य संसार को इस्लाम हेतु भी ऐसे उपाय नहीं कर लेने चाहिये। वैश्विक स्तर पर जो चल रहा है, उसमें तो यह काम तत्काल किया जाना चाहिये।
मुझे इसका भी भान हो गया कि देवबंद, बरेली आदि ऐसे घातक अधिष्ठापनों में आयेंगे जिनका प्रभाव वृत भारत की सीमाओं से बाहर तक जायेगा ! भारत अंतर्राष्ट्रीय आतंकियों का पालना बना हुआ है। यदि आप को स्वयं देखना हो तो तथा आप किसी ऐसे नगर के निवासी हैं जहाँ मुसलमान जनसंख्या पाँच प्रतिशत भी है किंतु विभिन्न वार्डों में घनीभूत है तो नगर मानचित्र ले कर उसका दुर्घटना मानचित्र बनायें। आप को समझ में आ जायेगा कि मस्जिदें बहुत सोच समझ कर, सामरिकता का ध्यान रखते हुये बनाई गई हैं। साथ ही यह भी कि घिर जाने की स्थिति में वहाँ के अन्य मतावलम्बियों हेतु सिवाय कट जाने के कोई अन्य उपाय नहीं है।
बहुत दिनों से विकिपीडिया की भाँति ही मुसलमानी एवं इसाई अपराधों के एक आँकड़ा एकत्रीकरण जालतंत्र बनाने पर विचार कर रहा हूँ जिनका भौगोलिक मानचित्रीकरण भी उपलब्ध हो। आरम्भ में लगा कि हो जायेगा किंतु अब लग रहा है कि यह एक पूर्णकालिक एवं धनाग्रही काम होगा। चाहे उक्त सज्जन की योजना हो या मेरी, हमारे पास विचार तो हैं किंतु संसाधन नहीं हैं। जिनके पास संसाधन हैं, उनके पास विचार नहीं हैं । इन दो वर्गों का अलगाव वैश्विक स्तर पर बना हुआ है तथा इस्लाम का जिहाद इसी अलगाव के कारण फल फूल रहा है।
इस्लाम में कोई सुधार नहीं हो सकता क्यों कि क्रूरान में नहीं हो सकता तथा वह मजहबी किताब एक ही है जिसका उसके लेखक की शिक्षाओं के साथ पालन करना प्रत्येक मुसलमान का मजहबी कर्तव्य है। मनुष्यों को मुसलमानों से इस कारण ही संकट है कि किताब में समस्त मनुष्यों को या तो मुसलमान बना देना निर्दिष्ट है या उनका विनाश कर देना तथा मुसलमानों में ऐसे सदैव रहेंगे तथा उन्हें अन्य मुसलमान जकात के माध्यम से आवश्यक संसाधन भी उपलब्ध कराते रहेंगे, जो मनुष्यों के विनाश हेतु आत्महत्या करने को सदैव तत्पर रहेंगे। दुहरा दूँ कि समय रहते इस्लाम से बचाव के सक्रिय उपाय पूरे विश्व को उसी भाँति कर लेने चाहिये जिस भाँति नाभिकीय संस्थानों, विकिरण संस्थापनों, घातक रासायनिक संयंत्रों आदि हेतु किया जाता है। सीधी कार्रवाई के आह्वान पर किस दिन कहाँ 'यूनियन कार्बाइड' हो जाये, ज्ञात नहीं।
... हाँ, आप ने ठीक पढ़ा है, मैंने मुसलमानों को मनुष्यों की श्रेणी में नहीं गिना है। वे तो पशु श्रेणी में भी नहीं रखे जा सकते! कारण इस्लाम, क्रूरान एवं उसके लेखक हैं।
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