Saturday, May 18, 2019

उड़ते तीर


उड़ते तीर आँखों में न लें, दूरदृष्टि बनाये रखें।
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इस धरा पर भाँति भाँति के लोग हैं। विविध रंग, रूप, वेश, भाषा, सामान्य स्वभाव आदि वाले तथा इनमें से प्रत्येक समूह का सकल मानवता को कुछ न कुछ दाय अवश्य है, सबके सिर कोई न कोई उपलब्धि अवश्य है। यहाँ तक कि पाकिस्तान भी वैश्विक आतंकवाद का पालना है। प्रलय में सब लय हो जायेंगे किंतु तब तक प्रत्येक मानव समूह का यह कर्तव्य है कि अपना दाय सम्पूर्ण समर्पण एवं सतत उत्कृष्टता के साथ मानवता को अर्पित करता रहे। विवेकानंद के कहा था कि भारत का दाय धर्म है। इसका अर्थ यह नहीं कि भारत भौतिक प्रगति नहीं करेगा, अवश्य करेगा परंतु उसका सिरमौर धर्म ही रहेगा।
कभी पुरातन पर्सिया तक भारत की सीमा थी। तुर्की, तुर्कमेनिस्तान, कजाक आदि से भी उत्तर तक आप के अवशेष आज भी पाये जाते हैं। मेसोपटामिया तक आप के सार्थवाह एवं व्यापारी अपना ध्वज लहराते थे। धर्म कटता गया, आप कटते गये। आज कश्मीर अनमन आप के साथ है। पञ्जाब पर खालिस्तान एवं इसाइयों का दबाव है, केरल एवं बंगाल देख ही रहे हैं। तमिलनाडु प्रशांत ज्वालामुखी है, जाने कब भभक उठे।
धर्म वह है जो प्रवाहित रहे। उपनिषदों का चरैवेति चरैवेति ऐसे ही नहीं है। चलेंगे तो प्रवाह होगा, परिवर्तन भी। पहले चलना सुनिश्चित करना होता है तथा आगे दिशा। हम चूकते चले गये जिसे आज की स्थिति से भी समझा जा सकता है।
विश्व की १३० अरब जनसंख्या आगे पाँच वर्ष अर्थात एक वैदिक युग कैसे रहेगी, इस हेतु चुनाव चल रहे हैं तथा हम कूड़े के ढेर में सभ्यता का उत्खनन कर रहे हैं! विश्व की धर्मध्वजा भारत गांधी, गोडसे, साध्वी, मोदी से बहुत अधिक महत्त्व रखता है। आप सभ्यता के युद्ध में हैं। युद्ध के निर्णायक क्षणों की दुविधा, भ्रम आदि घातक होते हैं। एक दिन, एक घण्टा, कुछ मिनट ही बहुधा बड़ा दु:खद भावी गढ़ देते हैं। पहले भी हुआ, आज भी हो रहा है कि ध्यान वास्तविक समस्याओं से हट कर अपने स्वार्थ, अहंकार, जाति, क्षेत्र आदि पर सिमट जाता है जब कि उनका भी हम भला नहीं कर रहे होते हैं। अधिक दिन नहीं बीते जब 'कोई माई का लाल' एवं एक विधेयक विशेष जैसे तीरों को आँखों में ले मध्यप्रदेश, राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ भारतद्रोही शक्तियों को एक युग भर शासन हेतु दे बैठे! वहाँ कितने अच्छे परिवर्तन हो गये हैं या हो रहे हैं, वे तो वहाँ के वासी ही बतायेंगे किंतु होगी वह निकट दृष्टि ही।
आप का धर्म, आप का एकमात्र देश एवं आप की एकमात्र भूमि सुरक्षित फलती फूलती रहेगी तभी आप की भावी संततियाँ एवं आप का वर्तमान भी फले, फूलेगा। आप की जाति, आप की भाषा, आप के स्वार्थ आदि तब ही सधेंगे जब अनुकूल शासन तंत्र होगा। दूर की सोचें कि मेवात हो, कैराना हो, श्रीनगर हो या बंगाल के वे क्षेत्र जहाँ से सार्वजनिक घोषणा एवं हिंसा के साथ हिंदुओं को पलायन को विवश किया जा रहा है; आज भारत में अनेक 'दारुल इस्लाम' हैं। आइसिस की घोषणा ऐसे ही नहीं है, वास्तविकता बहुत भयानक है तथा इसाई 'हिंदू आत्माओं की कटाई' में लगे हुये हैं। हजारो एकड़ भूमि मौन रहते हुये चर्च द्वारा क्रीत की जा रही है। इन सबके समक्ष पण्डिज्जी, बाबू साहब, यादव जी या महतो जी के क्षुद्र अहम कहीं नहीं ठहरते।
विचार करें कि मानसिक शीघ्र पतन के स्वभाव ने आप की क्या दुर्गति की है। जातिगत अहंकार एवं स्वार्थजन्य गुटसृजन से आप का कितना भला हुआ है, देश का कितना हुआ है! आँखें खुली रखें, मन को बली एवं तार्किक तथा मस्तिष्क को चैतन्य; आने वाले दिन कठिन परीक्षा के हैं। उलझें न, उलझायें न, अटकें न, अटकायें न। शत्रु का अनुवर्तन न करें।

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