दिक्काल, मनुष्य एवं सकल जीव जाने कितने उलझे अन्योन्याश्रित तंतुओं से सम्बद्ध हैं। सोचता हूँ कि क्या ऐसी कोई विद्या हो सकती है जो किसी निश्चित कालखण्ड के बारे में ऐसी भविष्यवाणी कर दे जो सब पर लगे?
क्या किसी राष्ट्र की 'जन्मकुण्डली' बनाई जा सकती है? वह भी भारत जैसे देश की?
कल ऐसे ही नवसंवत्सर के बारे में ढूँढ़ता भ्रमण कर रहा था, अनेक स्थानों पर इस वर्ष को बहुत बुरा बताया गया था। उत्सुकता वश २०७५ आरम्भ के समय की भविष्यवाणियों को देखा, वे भी कुछ अच्छी नहीं थीं। मैं सोचने लगा कि क्या सच में विगत वर्ष भारतीय जन हेतु कुल मिला कर बुरा रहा?
यह पता नहीं कि ये भविष्यवाणियाँ सम्पूर्ण विश्व की जनसंख्या हेतु होती हैं या केवल भारत देश की। यदि मानें कि केवल भारत हेतु होती हैं, और ऐसा मानने के कारण भी हैं - चतुर्युग केवल भारत भूमि पर होते हैं, ऐसा पुराण कथन उपलब्ध है - तो भी सवा अरब से भी अधिक जनसंख्या पर आगामी ३६५.२५ दिनों का सकल समेकित प्रभाव बुरा ही होगा, ऐसा कैसे कहा जा सकता है?
किसी भी विद्या की सीमायें होती ही हैं, उनसे परे दूसरी विद्याओं का क्षेत्र हो जाता है। योजनाबद्ध ढंग से संधान हो, उद्योग हो तो क्या किसी जनसमूह का कल्याण या विनाश नहीं किया जा सकता?
समृद्धि पूर्व के सिंगापुर हेतु क्या ऐसी भविष्यवाणियाँ की गयी थीं?
परमाणु बम एवं उसके पश्चात के उठ खड़े हुये जापान की?
दो दो विश्वयुद्धों से प्राय: ध्वस्त हो चुके एवं आगे समृद्ध यूरोप की?
जर्मनी के विभाजन की?
नाजियों द्वारा यहूदियों के व्यापक नरसंहार की? आगे इजराइल के निर्माण की?
अभी चल रहे यजिदियों के विनाश की?
कश्मीरी हिंदुओं के पलायन की?
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जाने कितने प्रश्न हैं। स्थूल एवं सूक्ष्म की बातें होती रहेंगी किंतु अनेक ऐसे प्रश्न किये जा सकते हैं कि उन घटनाओं की जिनके कारण मानवता बहुत गहराई से प्रभावित हुई या हो रही है, क्या भविष्यवाणियाँ की गयी थीं?
विद्या के प्रयोग से कौतुक हो या उसे जाँचने के कर्म, विशाल जनमानस को आगत समय के बुरे या अच्छे होने की बता उसके अवचेतन/अचेतन को पूरे वर्ष हेतु प्रभावित कर देने का क्या औचित्य है?
जब ऐसे प्रश्न उठते हैं तो अतिवादी प्रतिक्रियायें होती हैं, एक होती है ज्योतिष विद्या एवं ज्योतिषियों को बुरा भला कहने की, उन्हें कोसने की तथा दूसरी होती है समस्त को उचित बताने की, एक बहुत परिष्कृत विद्या की बहुत परिष्कृत निष्पत्तियों के रूप में प्रस्तुत करने की। भारत में शास्त्रों की न्यूनता आज भी नहीं है, पढ़ने वाले भले न हों; शास्त्रीय औचित्त्य दर्शाना असम्भव नहीं।
अन्य विद्याओं की भाँति ही मार्ग दो अतियों के बीच में है। उस पर चर्चा होनी चाहिये तथा इस पर कि तुलनात्मक रूप से आज जो सफल एवं सुखी देश हैं, उनमें फलित ज्योतिष की कितनी मान्यता है? जनता में कितनी पैठ है? क्या फलित ज्योतिष को नवसंस्कार की आवश्यकता है? वैसे ही जैसे कभी आर्यभट ने गणित का क्या किया था?
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लेख लम्बा था, प्रकाशित करते ही लुप्त हो गया, दुबारा लिखा गया है किंतु वह बात नहीं रही। इसका भी कोई फलित ज्योतिषीय पक्ष हो सकता है :)
किसी भी व्यक्ति पर या विद्या पर या व्यवसाय पर आक्षेप न करें। ज्योतिष उत्कृष्ट विद्या है, गणित एवं फलित पक्ष यिन-यान की भाँति ही एक दूसरे से जुड़े हैं।
इसके अध्ययन अध्यापन का या कहें कि विद्या का ही, वैश्विक स्तर पर, रूप ऐसा ही रहा है। उच्च गणित को आप विविध यवन अक्षरों एवं अन्य चिह्नों के प्रयोग के कारण गाली नहीं दे सकते, इस कारण भी नहीं कि एक अंक के ऊपर दूसरा अंक कैसे चढ़ा दिया जाता है!
विनय झा जी ने इस को राजज्योतिष नाम दिया है।उनके वेबसाइट पर लेख और विधी उपलब्ध है।
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