Friday, April 19, 2019

क्रूरान पर एक टिप्पणी

मोहमद के क्रूर मजहब के पूर्व का अरब साहित्यिक रूप से उन्नत था जिसे मोहमद की महिमा बढ़ाने के चक्कर में जाहिल बताना मुस्लिम जमात हेतु सदियों से सवाब का काम रहा है। ढेर सारा फर्जीबाड़ा किया गया जिसमें वर्तमान की क्रूरान भी है। जिहादी जुबान उर्दू में तरही गजल एवं मुशायरे का चलन है जिसमें प्रसिद्ध रचनाओं से टुकड़े उठा कर उसी लय में अन्य रचनायें लिखी पढ़ी जाती हैं। इस चलन के मूल में क्रूरान की रचना का रहस्य छिपा है। अनपढ़ मोहमद अपने से पूर्व एवं प्रसिद्ध समकालीन अरबी कवियों की 'तरह' के काव्य में अपनी विक्षिप्ति को रचता था। इसमें कोई बड़ी बात नहीं, ऐसे अनपढ़ उदाहरण हमें अपने गँवई परिवेश में भी दिख जाते हैं। जब मुसलमान क्रूरान की 'तरह' का कुछ रचने की चुनौती देते हुये उसे आसमानी किताब बताते हैं तो वस्तुत: वह 'तरही' चुनौती प्राचीन अरबी कवियों की प्रतिभा से जुड़ती है जिसमें मोहमद का कुछ नहीं।
 एक बार मोहमद की बेटी पिता की किसी रचना को गाते हुये अपनी सहेली से मिली जिसका पिता प्रसिद्ध कवि था तो उसने टोका कि यह तो मेरे अब्बा का रचा है जिसे तू अपने बाप की बता रही है। दोनों में इस पर झगड़ा हो गया।
वर्तमान में उपलब्ध क्रूरान खलीफा उस्मान की देन है जिसने एक संस्करण को छोड़ शेष सभी जलवा दिये, ढूँढ़ ढूँढ़ नष्ट करवा दिये। आज भी कहीं न कहीं से भिन्न क्रूरान अवशेष मिल जाते हैं जिन्हें सऊदी दबाव में ठण्डे बस्ते में डाल दिया जाता है।
क्रूरान मोहमद के मरने के पश्चात लिखी गयी जिसके अंश उसके आततायी गिरोहियों ने अपने अपने ढंग रट रखे थे तथा जिनके आधार पर मुसलमानों ने अनेक संस्करण रचे। उस्मान ने भ्रम की स्थिति से निपटने हेतु उक्त काम किया। जिस प्रकार पॉल ने जीसस को गढ़ा, उसी प्रकार उस्मान ने मोहमद का वर्तमान उपलब्ध रूप गढ़ा। इस्लाम की सफलता का कारण बर्बर लूट, बलात्कार, विनाश को संस्थागत रूप देना था जिसमें माल-ए-गनीमत सवाब था तथा २५ प्रतिशत मोहमद द्वारा रख लेने के पश्चात सभी लुटेरों में बँटता। खूँखार दस्युमण्डली के लिये जर, जोरू, जमीन का आकर्षण बहुत प्रभावी हुआ जिसमें कोई नैतिक निषेध नहीं थे। मोहमद ने पहले से उपलब्ध ऐसे तत्वों को संगठित किया जो मार काट प्रवीण होने के कारण सामान्य जन पर भारी पड़े। उसके मॉडल को आज के आई एस की सफलता से समझा जा सकता है।
क्रूरान की कथित काव्यात्मक भावप्रवणता अब लुप्त पुरातन अरबी काव्य की अनुकृति के कारण है। सामग्री या तथ्य की दृष्टि से क्रूरान का अपना कोई शुभ नहीं है। लूट, हत्या, यौन अत्याचार, दास बना कर मनुष्यों का व्यापार आदि को जायज बना देने की दृष्टि से क्रूरान अवश्य अनूठी रचना है, न भूतो न भविष्यति।
कुछ वैसा ही जैसे शिवताण्डव की लय एवं छन्द में 'तरही तोतानामा' रच कर उसे आसमान से उतरी दिव्य वाणी बता दिया जाय। क्रूरान में ऐसा कुछ भी शुभ नहीं है जो पहले से उपलब्ध न हो तथा उससे लाख गुने अच्छे से न प्रस्तुत किया गया हो। क्रूरान की अद्वितीयता उसके 'अपराध मैनुअल' होने में है कि अपराधी मानस अपनी बनाने हेतु किस स्तर तक जा सकता है! 

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